मोहताज हो गई है देशभक्ति भी हमारी चंद तारीखों की,
जागती है ये बस कुछ खास कार्यक्रमो से,
बाकी दिनों में चाहे भले ही मर जाए सब,
ग़रीबी,भुखमरी और बेरोज़गारी से,
गर वाकई दिखानी है देशभक्ति तो हर रोज़ दिखाओ,
छोड़ते क्यों हो तुम हर बात सरकार पे,
कुछ कार्यों का बीड़ा तुम खुद भी उठाओ,
पर इतना सब हमने गर जो कर दिया,
तो शायद देश का विकास हो जाएगा,
और देश के कुछ तथाकथित लोगो का दायित्व जो छिन जाएगा,
उठेंगे कल फिर हम और कोसेंगे नेहरू को इसके लिए,
अब ज़िम्मेदारियों का बोझ है कहीं तो सरकाना पड़ेगा।
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