वोट दे आते हो तुम सब जात, फिरका देखकर
ऐ वतन के वासियो इसमें है खतरा, देखकर
फिर नहीं तुम बाद में सब चीखते रह जाओगे
इस सियासी दौड में शामिल है बहरा, देखकर-
Pen Name- Updesh 'Vidyarthi'
Home Town- Karwi, Chitrakoot (U.P.)
यारो के संग ताल से ताल मिला कर रक्स किया
चिढ़ने वालों को हमने और चिढ़ा कर रक्स किया
डी जे पर कुछ लोग खुशी से थिरके थे
कुछ लोगों ने जोश में आ कर रक्स किया
कुछ लोग गणित में नब्बे पाकर भी रोए
कुछ लोगों ने तैंतिस पा कर रक्स किया
बुद्धू भूत भविष्य की सारी चिंता नाहक हैं
साधू संत फकीर ने सबको यही बताकर रक्स किया
जिस शख्स को दुनिया पागल समझा करती थी
उसने ही सारी दुनिया फैन बनाकर रक्स किया
दीवाने अंग्रेजी के कुछ सुनने को तैयार न थे
हमने उनको हिंदी- ऊर्दू शेर सुना कर रक्स किया
-
जब से दिल में हमारे वो आसीन हैं
लोग कहते हैं हम उनके आधीन हैं
अहल-ए-दिल हो तो फिर ये बता दो हमें
रश्म-ए-उल्फत ये सारे क्यों प्राचीन हैं
जब से चूमे हैं लब हमको एहसास है
कितने शीरी हैं ये कितने नमकीन हैं
तुम मिले क्या हमें ये मिजाज़ आ गया
कितने सादा थे हम कितने रंगीन हैं
इश्क करना यहां जुर्म बिल्कुल नहीं
लोग समझे मगर इसको संगीन हैं
कद उड़ानों की तुम क्या बताओगे अब
कोई कौवे नहीं हम भी शाहीन हैं-
कुछ लोग मिलन पर खुश कितना हैं
कुछ लोग जुदाई पर कितना रोए हैं
एक ही चीज जो common है सब लोगों में
सारे ही तो इश्क में अपने अपने खोए हैं
-
कहां हवा - ओ - पानी से बुझ पाती है
ये हुस्न की आग जहां लग जाती है
वर्षों से ये लोगों का फैलाया भ्रम है
वरना कोयल कितना मीठा गाती है
देखे कोई आंखे भर कर न देखे
फिर तो कोई पागल है या कोई संन्यासी है
सबकी उम्र में ऐसा दौर आ जाता है
जब रातों की नींदे तक उड़ जाती है
सब अपनी अपनी किस्मत लेकर जन्में हैं
झोपड़ियों में रानी कोई, कोई महलों में दासी है
चाहत से दो रोटी भी अपने घर मिल जाए तो
अपना घर ही वृंदावन है अपना घर ही काशी है
पूरा पाने के चक्कर में तुमको खो न दें
अपनी खातिर दोस्त का रिश्ता काफ़ी है
-
सब हवा देते गए झूठे मेरे मिज़ाज को
और आग में जलते हुए राख मैं बनता गया
-
आंखो में सुरमा हरदम रखती है भौंहे तिरछी से
यार मोहब्बत हो बैठी है हमको ऐसी लड़की से
चाहत की इस दुनिया से बच के रहना था मुझको
देखो फिर भी ये गलती मैं कर बैठा हूं गलती से
एक थी वस्ल की आग लगाने वाली रुत सावन
ऊपर से बारिश में कोई भीग रहा था मस्ती से
अब मैं आसमान पे आंख लगाकर बैठूं क्यों
जब चांद निकलना है मेरा एक खिड़की से
फूलों के पैग़ाम हवा से खुश्बू बनकर आते हैं
रस पीने जाते हैं भौंरे देखो उनकी मर्ज़ी से
मदिरा से मादक होती है यौवन की खुश्बू यारो
हर पैमाना पूछ लिया है मैने उसके दर्जी से
-
मोहब्बत कभी पहली या आखिरी नहीं होती
मोहब्बत या तो होती है या फिर नहीं होती-
ख़राबी है अगर औज़ार में तो औज़ार बदले जाएं
ये भी भला है बात कोई कि सहसवार बदले जाएं
-
कुछ इस तरह से पड़ गई दर्द में जीने की आदत
तमन्ना बस रही हरदम दर्द दे कोई तो कविता हो-