Jaya Mishra   (जया मिश्रा 'अनजानी’)
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Joined 1 August 2017


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24 APR AT 0:13

जो भोर होता नहीं है
जो शोर होता नहीं है

तो जाओ गरजो लेकर मशालें
क्रोध अपना बताने के लिए

निकलो रवि की खोज में
इस रात को बुझाने के लिए!

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23 APR AT 1:02

और कितना समय बाक़ी
तुमको उठाने के लिए
और कितनी चीखें बाक़ी
तुमको जगाने के लिए

और कितनी रात बाक़ी
ये सवेरा आने के लिए
और कितना आघात बाक़ी
तुमको रुलाने के लिए

तुम्हारा धीर काफ़ी नहीं
उनका पावक बुझाने के लिए
अब निकलो लेकर मशालें
ये अंधकार मिटाने के लिए!

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17 APR AT 0:39

शोक भरकर ये ग्रीवा
और किसके दुःख में चीख़ती है?
इस स्वयं को ठोस मैं को
और किसकी पीड़ा भेदती है?

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13 APR AT 12:20

ये जो गुरुत्व
महसूस होता है
धरती पर

वास्तव में
सूर्य का है!

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10 APR AT 1:20

‘स्वयं’
(कविता अनुशीर्षक में)

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15 FEB AT 14:09

ये ‘भक्ति’ कैसी दिखती होगी
बिल्कुल मीरा जैसी लगती होगी

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23 JAN AT 1:38

कवि का
हथियार क्या है?

कलम।

कवि की
शक्ति क्या है?

कल्पना!

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20 JAN AT 16:25

“ ध्यान में समय
आसपास से तो
गुज़रता है
पर भीतर से नहीं…

योगी
समय के लिए
अस्पृश्य हो जाता है।”

(आगामी पुस्तक “अनुरागिनी” से…)

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7 JAN AT 14:29

दुःख में समय
धीरे गुज़रता है

क्योंकि
दुःखी मनुष्य
भारी होता है

समय को
उसका हाथ
पकड़कर नहीं
उसे ढोकर
चलना पड़ता है।

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13 DEC 2024 AT 17:05


लिखने को हर्फ़ नहीं
पहले-सी सर्द नहीं

दिसम्बर!
तुमको हुआ क्या है?

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