Jaya Mishra   (जया मिश्रा 'अनजानी’)
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Joined 1 August 2017


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31 JUL AT 17:41

धरती का सूर्यप्रेम
परिभाषित करता है
भोर का कलरव!

धरती का सूर्यप्रेम
परिभाषित करता है
साँझ का मौन!

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24 JUL AT 13:53

अथाह जल
अभिषिक्त करता

सावन में
सबसे बड़ा कांवड़िया
ये मेघ है

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24 JUL AT 11:59

उसके स्कूल का पहला दिन!
(अनुशीर्षक में)

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23 JUL AT 1:44

पूरब,पश्चिम
और दक्षिण
ये तीनों दिशाएँ हैं

लेकिन उत्तर
गंतव्य है।

केवल
नाम से उत्तर नहीं ,
यह मनुष्य के
हर प्रश्न का उत्तर है…!

-


10 JUL AT 19:48

मनुष्य
के साथ
सबसे बड़ी
विडम्बना
यह है कि
वह ‘मृत्यु’ के
भय में
‘जीवन’
व्यतीत करता है!

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10 JUL AT 18:56

यदि कोई भी
धर्मग्रन्थ,
वेद-उपनिषद
तुम्हारे
और केवल
तुम्हारे बारे में
बात करता है

जिसे पृथ्वी के
शेष जीवन से
कोई औचित्य नहीं है
वह मौलिक रूप से
विक्षिप्त है!

-


28 JUN AT 2:40

जब
थक जाएगा संसार
इस शोर
क्रांति, द्वेष
प्रतिस्पर्धा
और युद्ध से,
तब
भागता हुआ समय
लौट आएगा
अपने पुराने
ठिकाने पर
उस आदम के पास,

जिसके लिए बस
भोजन और आवास
ज़रूरी था…।

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23 JUN AT 0:23

‘स्मृतियाँ’
हमारे जीवन के
वो पदचाप हैं

जहाँ समय
अबतक
धूल नहीं भर पाया।

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14 JUN AT 1:48

स्तब्ध है संवेदना
शब्द सारे मौन हैं
उन अपरिचितों के शोक में
स्वत्व अपना गौण है..!

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14 JUN AT 1:30

पल में बिखरी ज़िन्दगी
एक चीख़ बाक़ी रह गई
ताउम्र की सब ख्वाहिशें
राख़ बनकर ढह गईं…!

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