स्तब्ध है संवेदना
शब्द सारे मौन हैं
उन अपरिचितों के शोक में
स्वत्व अपना गौण है..!-
Jaya Mishra
(जया मिश्रा 'अनजानी’)
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आत्मबोध की राह में!
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Joined 1 August 2017
14 JUN AT 1:48
14 JUN AT 1:30
पल में बिखरी ज़िन्दगी
एक चीख़ बाक़ी रह गई
ताउम्र की सब ख्वाहिशें
राख़ बनकर ढह गईं…!-
24 APR AT 0:13
जो भोर होता नहीं है
जो शोर होता नहीं है
तो जाओ गरजो लेकर मशालें
क्रोध अपना बताने के लिए
निकलो रवि की खोज में
इस रात को बुझाने के लिए!-
23 APR AT 1:02
और कितना समय बाक़ी
तुमको उठाने के लिए
और कितनी चीखें बाक़ी
तुमको जगाने के लिए
और कितनी रात बाक़ी
ये सवेरा आने के लिए
और कितना आघात बाक़ी
तुमको रुलाने के लिए
तुम्हारा धीर काफ़ी नहीं
उनका पावक बुझाने के लिए
अब निकलो लेकर मशालें
ये अंधकार मिटाने के लिए!-
17 APR AT 0:39
शोक भरकर ये ग्रीवा
और किसके दुःख में चीख़ती है?
इस स्वयं को ठोस मैं को
और किसकी पीड़ा भेदती है?-