जो कभी मिला ही नहीं, मैंने उसे भी खो दिया
एक बीज था जिसे बिना पानी के ही बो दिया
अंकुर उसका फूटना ही न था,
शायद तभी मैंने भी बिना आंसुओं के रो लिया।
यूं ही बदलते बदलते क्या कुछ नहीं बदला
जमाने से लेकर ,जो अपना था वो भी बदला
बदलने को कुछ बचा न था
इसलिए शायद मैंने अब खुद को बदल लिया।
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