कभी मेरी कभी उनकी सुनते हैं...
हर वक़्त अपना पहलू बदलते हैं...
समय के साथ साथ पन्ने पलटते हैं...
अंदर विष, होठों पर अमृत लिए फिरते हैं...
कभी दूसरो को, कभी अपनों को डसते हैं...
यहां लोग हर क्षण लिबास बदला करते हैं...
कभी सुंदरता, कभी आकर्षण पर रीझा करते हैं...
कभी खयाती, कभी प्रसिद्धी के लिए लड़ा करते हैं...
यहां लोग हर क्षण लिबास बदला करते हैं...
कभी गुमसुम, कभी मुस्कुराहट लिए फिरते हैं...
ज़माने के गमों से खिल खिला कर सामना करते हैं...
कभी आगे जाने की होड़, कभी पीछे रह जाने पर निराश हुआ करते हैं...
यहां लोग हर क्षण लिबास बदला करते हैं...
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