अब कहां कोई बेवजह अपनों से मिलता है...
अब कहां किसी के पास अपनों के लिए वक्त होता है...
गर मिलना हो अपनों से तो परिवार में किसी एक को सोना पड़ता है...
अब कहां किसी के जीवन में सुकून का लम्हा होता है...
गर तलाश है सच में सुकून की तो, अपने ही अंदर खोजना पड़ता है...
अब कहां कोई अपनों की खुशियों में शामिल होता है...
बस लबों पर मुस्कुराहट और हाथों में खंजर होता है...
गर देनी हो खुशियाँ अपनों को तो, अपना ही दर्ज़ा समतल करना पड़ता है...
अब कहां कोई बेवजह अपनों से मिलता है...
अब कहां किसी के पास अपनों के लिए वक्त होता है...
गर मिलना हो अपनों से तो परिवार में किसी एक को सोना पड़ता है...
अब कहां कोई अपनों की इच्छाओं की पूर्ति करता है...
गर करनी हो इच्छाएं पूर्ण अपनों की तो, अपनी ही इच्छाओं को दफनाना पड़ता है...
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A҉ n҉ d҉ P҉ l҉ e҉ a҉ s҉ e҉ u҉ n҉ f҉ o... read more
ना सोचा था की यह मोड़...
मेरी ज़िंदगी में भी आएगा...
खुदा भी मुझसे खफ़ा होजाएगा...
तेरे साथ का सफ़र पल में...
खत्म होजाएगा...
तेरे बिन ये जीवन वीरान होजाएगा...
इश्क़ की गलियों में फिर...
न कोई चांद नज़र आएगा...
कभी सोचा ना था की...
ये सैलाब भी आएगा...
अपने संग हर खुशी बहा ले जाएगा...
रूह मिलन की ख़ोज में जिस्मों...
का नाता ही रह जाएगा...
इश्क़ की गलियों में फिर...
न कोई चांद नज़र आएगा...-
मुस्कुरा कर, अश्क बहा कर...
हर गम छुपाकर...
दिल से दिल मिलाकर...
तुझसे इश्क़ किया मैंने...
तेरी हर अठखेलियां सही मैंने...
इंतजार, इज़हार, इबादत...
सब किया मैंने...
तेरा हर सितम भुलाकर...
तुझसे इश्क़ किया मैंने...
कभी नींदे उड़ा कर...
कभी तुझपर हक़ जाता कर...
तुझसे इश्क़ किया मैंने...
सांसों में सांसे थामकर...
तेरा हथेली को अपनी...
उंगलियों से जकड़ कर...
साथ चलने की हर कसक पर...
तुझसे इश्क़ किया मैंने...-
You lied just like that...
You cheat just like that...
You broke me just like that...
Everything ended just like that...
You stole myself from me just like that...
I tried to save it just like that...
I tried to be my best just like that...
I tried to understand everything just like that...
But then everything vanished just like that...
I tried, cried, and screamed just like that...-
कहते तो सब हैं...
मगर, करता कोई-कोई है...
लड़खड़ाते तो सब हैं...
मगर, संभालता कोई-कोई है...
आंखे तो सब खोलते हैं...
मगर, जागता कोई-कोई है...
डोर बांधते तो सब हैं...
मगर, निभाता कोई-कोई है...
मुस्कुराते तो सब हैं...
मगर, मुदित कोई-कोई है...
चाहते करते तो सब हैं...
मगर, सफल कोई-कोई है...
ख़्वाब तो देखते सब हैं...
मगर, सच करता कोई-कोई है...
गिरते तो सब हैं...
मगर, उठता कोई-कोई है...
सुनते सब हैं...
मगर, समझता कोई-कोई है...
चलते तो सब हैं...
मगर, मंज़िल तक पहुंचता कोई-कोई है...-
मैं गर्म काढ़े सा...
तू चाय की घूंट प्रिये...
मैं तपती धूप...
तू निर्मल छाव प्रीये...
मैं तीखी मिर्च...
तू मधु सी मधुर प्रीये...
मैं घना कोहरा...
तू चांदनी रात प्रीये...
मैं काला अंधेरा...
तू रोशनी का उजाला प्रीये...
मैं कठिन उत्पीड़न...
तू मुस्कान प्रीये...
मैं अपुर्ण राह...
तू परिपूर्ण मंज़िल प्रीये...
मैं एक कस्ती...
तू पूरी कायनात प्रीये...
मैं असफलता का मारा...
तू सफलता का भंडार प्रीये...
मैं एक छोटा तारा...
तू अभाज्य चांद प्रीये...
मैं डूबती नाव...
तू ठाहेरा किनारा प्रीये...-
आज लफ़्ज़ नहीं मिल रहे बयां कर पाने को...
कल शायद हम ही ना रहे तुझे वक्षस्थल से लगने को...
आज परवाह नहीं कर रहे मुस्कुराने को...
कल तरस जाएंगे इश्क़ जताने को...
आज वक़्त नहीं निकाल पा रहे हाल जानने को...
कल लम्हें ना नसीब होंगे संग बिताने को...
आज ज़ाया कर रहे हमारे वाट जोहाने को...
कल राह तकेंगे हमारे लौट के आने को...
आज ज्ञात नहीं एहमियत अपने प्रिय को पाने को...
कल अनुभूति कराते फिरेंगे ज़माने को...
आज लफ़्ज़ नहीं मिल रहे बयां कर पाने को...
कल शायद हम ही ना रहे तुझे सीने से लगने को...-
कभी मेरी कभी उनकी सुनते हैं...
हर वक़्त अपना पहलू बदलते हैं...
समय के साथ साथ पन्ने पलटते हैं...
अंदर विष, होठों पर अमृत लिए फिरते हैं...
कभी दूसरो को, कभी अपनों को डसते हैं...
यहां लोग हर क्षण लिबास बदला करते हैं...
कभी सुंदरता, कभी आकर्षण पर रीझा करते हैं...
कभी खयाती, कभी प्रसिद्धी के लिए लड़ा करते हैं...
यहां लोग हर क्षण लिबास बदला करते हैं...
कभी गुमसुम, कभी मुस्कुराहट लिए फिरते हैं...
ज़माने के गमों से खिल खिला कर सामना करते हैं...
कभी आगे जाने की होड़, कभी पीछे रह जाने पर निराश हुआ करते हैं...
यहां लोग हर क्षण लिबास बदला करते हैं...-
मुझसे प्यार नहीं था तो अल्फ़ाज़ में बयां करते...
यूं वक़्त, बेवक्त मेरी आह ना लेते...
वो जब पूछा था- “कोई और है क्या ज़िंदगी में तुम्हारी?”...
निष्कपट कपाल हिलाकर हां कर देते...
बे वज़ह मुझे विषाद ना करते...
जब दिन भर व्यस्त रहने का कारण पूछती थी...
तो दफ़्तर में ज़्यादा कार्य का बहाना ना करते...
मुझसे प्यार नहीं था तो अल्फ़ज़ में बयां कर देते...
यूं वज़ह, बे वज़ह मेरी आह ना लेते..
जब दूरियां बढ़ रही है हमारे बीच ये बतलाया था...
उस वक़्त तो मेरी बातों का मोल कर लेते...
यूं मेरी हर ख्वाहिश आपुर्ण ना करते...
हर वक़्त मुझे परेशान ना करते...
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