Priya   (प्रिYA)
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Joined 9 April 2019


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8 DEC 2023 AT 22:50

कल को सुबह जब तुम आंखें खोलो....
तब शायद मैं न रहूं...

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28 NOV 2023 AT 12:58

तेरी हसीं से मेरा चेहरा खिल-खिला उठता है...
तेरी खामोशी से मेरा मन मचलता है...

तेरी छुआन से मेरा हर घाव भरता है...
तेरी शायरी से मेरा दिन बनता है...

तेरा साथ हर परिस्थिति में ना छोड़ने का वादा करता है...
ये चंचल मन सबसे अनजान, दुनिया की रस्मों से परे
बस तुझ पर स्थिर होने की प्रतिज्ञा करता है...

तःउम्र बस तेरा होने को कहेता है...
तेरे साथ अक्षत आयुष्य को अधीर रहता है...

बस एक तेरी अनुमति की प्रतीक्षा कर रहा है...
तेरे एक हां की घात में सपने बुन रहा है...

तेरी यादों में जी रहा है...
तुझे अपना कहने को, इजाज़त मांग करता है...

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27 SEP 2023 AT 21:03

ना जाने क्या हुआ है...
शायद जो सोचा वो पा ना सके...

जो मांगा वो मिल ना सका...
जो चाहा वो हासिल ना लगा...

साथ चलने से पहले ही वियुक्त हो गए...
सपने सजने से पहले ही बिखर गए...

फूल खिलने से पहले ही शुष्क हो गए...
चांद की चांदनी विरह सी हो गई...

शायर को शायरी विवर्ण सी हो गई...
साजन की सजनी बेवजह क्षुब्ध हो गई...

ना जाने क्या हुआ है...
सारा जग कुछ रुष्ठ सा लगता है...

गहन कंठ की प्यास शुष्क सी हो गई...
मन की आस कहीं लुप्त सी हो गई...

सावन की हरियाली बादलों में ही कहीं सो गई...
ना जाने क्या हुआ है...

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12 SEP 2023 AT 15:01

I have so much to say, but all I want to say is keep inspiring us the way you're doing, you gave wings to the noob writers like me. I never imagined to write a single line but now I can write paragraphs this is all because of you!!

Thank you so much for inspiring, being there when no one else was believing in my writings and even when no-one was there to understand my thoughts and feelings.

Happiest birthday to you baba ji, may you long live and this plateform never ever turned off. 🌟🍬🍫🎂

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28 JUL 2023 AT 15:20

बीच सावन में भी पतझड़ का अनुभव करना पड़ता है...
न चाहते हुए भी रिश्तों में समझौता करना पड़ता है...

अपनी प्रगाढ़ इच्छाओं को दफन करना पड़ता है...
अश्कों का महफिलों से फासला रखना पड़ता है...

देखो न, ये रिश्ते और समझौते एक दूसरे से
एकदम विपरीत होते हुए भी कितने समरूप हैं...

बस इनकी ही खातिर ख़ुद को पूर्णतया तबाह कर
वास्तविकता लुका कर चलना पड़ता है...

कभी रिश्तों के लिए समझौता करना पड़ता है...
तो कभी समझौतों के लिए रिश्ते निभाने पड़ते हैं...

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4 JUL 2023 AT 11:17

आंखों से धुंध हटाना पड़ता है...
सच्चाई संसार को समझना पड़ता है...
धुंधले अक्षरों को अनमेल करना पड़ता है...
जिंदगी यू ही नहीं गुलजार है...
कभी कभी मर के भी सांसों का सहारा लेना पड़ता है...
प्रगाढ़ गमों में भी मुस्कुराना सीखना पड़ता है...

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16 JUN 2023 AT 19:42

मन की चाल में मत आना...
मन का तो काम ही है रिझाना...
बेमतलब की ख्वाहिशें पिरोए ये अंजाना...
न जाने कब किसके पीछे चल पड़े ये दीवाना...
सफ़र सही गलत ये इसने न जाना...
अपनों से न कभी शर्त लगाना...
बस उनका हाथ पकड़ संग निभाना...
उम्मीदों की डोरी बंधे बहते जाना...
मन तो है बैरी नीरवता का जाने ज़माना...
कब किसकी खुशी में खुश होजाए...
कब उदासीन बड़ा मुस्किल है इसको समझ पाना...
मन की चाल में मत आना...
अपनी ही मौज में चलता है ये मस्ताना...

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21 MAY 2023 AT 16:52

तुम्हारी मुस्कान पर मैं वार जाऊ...
तुम्हारे नज़रों के इशारों पर मैं रीझ जाऊ...
तुम्हारे आदाओं पर मैं मचल जाऊ...
तुम्हारे इश्क़ जताने पर मैं पिघल जाऊ...
मैं बस तुम्हारी बन जाऊ...
तुम्हारी हसीन मुलाकातों पर मैं सौ आसमां लुटाऊ...
दुनिया की न सुनू बस तुम्हारी सुनती जाऊ...
तुम्हारे गमों को मैं अपना बताऊं...
तुम्हारे आते ही मैं शर्मा के परदे के पीछे छिप जाऊ...
मैं बस तुम्हारी बन जाऊ...
तुम्हारे संग मैं अपनी दुनिया सजाऊं...
तुम्हारे सपनों को मैं अपना बताऊं...
तुम्हारी एक झलक को मैं मिलों तक आऊ...
तुमसे बातें करने को रोज नए नए बहाने बनाऊं...
मैं बस तुम्हारी बन जाऊ...

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18 MAY 2023 AT 9:53

हां, इतने वर्षों से हम साथ थे
एक दूसरे के कितने खास थे
देखो ना एक दूसरे के कितने पास थे

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21 MAR 2022 AT 10:08

अब कहां कोई बेवजह अपनों से मिलता है...
अब कहां किसी के पास अपनों के लिए वक्त होता है...
गर मिलना हो अपनों से तो परिवार में किसी एक को सोना पड़ता है...

अब कहां किसी के जीवन में सुकून का लम्हा होता है...
गर तलाश है सच में सुकून की तो, अपने ही अंदर खोजना पड़ता है...

अब कहां कोई अपनों की खुशियों में शामिल होता है...
बस लबों पर मुस्कुराहट और हाथों में खंजर होता है...
गर देनी हो खुशियाँ अपनों को तो, अपना ही दर्ज़ा समतल करना पड़ता है...

अब कहां कोई बेवजह अपनों से मिलता है...
अब कहां किसी के पास अपनों के लिए वक्त होता है...
गर मिलना हो अपनों से तो परिवार में किसी एक को सोना पड़ता है...

अब कहां कोई अपनों की इच्छाओं की पूर्ति करता है...
गर करनी हो इच्छाएं पूर्ण अपनों की तो, अपनी ही इच्छाओं को दफनाना पड़ता है...

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