सुकुन के पल चैन की नींद चुरा कर लाए है..
आज फिर हम....... बड़े दिनों बाद घर आए है-
कभी खैर कभी विपदा भी आली,
कभी चका चोंद कभी गरीबी भी राली,
अपरू हौसला भी मजबूत रख्या,
कभी रून भी आलू कभी हैसी भी आली।
अपरी देवतो की भूमी थे, फिर चलदू कारा,
कभी रूडी त कभी मौल्यार भी आली।
हम भैर परदेश मा रूला या घौर मा रूला,
मिथे तुम्हरी खुद भी आली, अर याद भी आली।।-
हमसफ़र न समझ मुझे, तमन्नाओं का शहर मत बसा
मैं परदेशी हूं मुझमें छोड़कर जाने का “हुनर” शामिल है-
तोड़ दे निगाहों का भरम वो नज़र दे मौला।
मेरे हालाते दिल का उनको खबर दे मौला।
दे दिलबर के दिल का पता अपने बन्दे को।
मरहम ए दिल उसका बना, जिगर दे मौला।
राही भटक गया है शायद दुनियादारी में।
जो ले जाए घर उसे वो रहगुज़र दे मौला।
दे रातों की नींद चैन की, चारों आँखो को।
थोड़ी समझ ए हयात थोड़ी सबर दे मौला।
कहाँ है नीम,आम अमरूद बरगद औ पीपल
कड़ी धूप है दालान ए हयात में शज़र दे मौला
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मैं कल फिर निकल जाऊंगा जिंदगी की तलाश में..
कुछ दर्द छलक जाएंगे मेरी आंखों से...
कुछ छुपा लूंगा अपने पास में..!!-
परदेशी के प्रीत मे पागल हो..
भला ऐसा इश्क भी क्यों करना..
उसपर मरकर मिलेगा क्या..
भला खुद पर क्यों नहीं मरना...-
आज फिर उसी रहगुज़र
से जब गुज़रे फ़िर दिखने
लगे हर वज़ूद में निशा तेरे ,
आँखे हो रही थी सजल
नहीं रुक रहे थे ये नीर मेरे ,
इन्हें छिपाने की सुध
में कितने यत्न किये जा
रही थी मगर रुक नही रहे
थे , मोती ये बन्द पलकों से मेरे ।।-
जब मुझे पता चला कि तुम पानी हो,
तो मैं भीग गया सिर से पांव तक...
जब मैंने जाना कि तुम हवा की सुगन्ध हो,
तो मैंने इक श्वास में समेट लिया तुम्हें अपने भीतर ...
जब मुझे मालूम हुआ कि तुम मिट्टी हो
तो मैं जड़े बनकर समा गया तुम्हारी आर्द्र गहराइयों में...
जब मुझे पता चला कि तुम आकाश हो, तो
मैं फैल गया बनकर शून्य ...
और अब मुझे बताया जा रहा है कि तुम अग्नि हो,
तो मैंने खुद को बचाकर रख लिया है तुम्हारे लिए ...
आओ मुझे जलाकर मेरे प्रेम को परिपूर्ण कर दो...
@Unknown
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Pehle to aise nahi the
kuch badle badle se lag rahe ho..
Jb se aaye ho pardesh se "Babuwa"
Tum pure Pardeshi ho gaye ho...-