कमबख्त
कितनी कंजूस है वो...
एक जोड़ कपड़े मैं दिला देती हूँ,
कहती ही नहीं है वो...
-
दोस्त की ज़ुबानी!
इक प्रेम कहानी!
कि,
देवीजी गयी है शादी में पीयर अपने,
साथ ले गई है प्रेम की निशानी रूपी सपने,
और मेरा जीवन भी, यानि खुद वो...
वहाँ वो सजती है,
यूं संवरती है,
और भेजती है
श्रृंगार से परिपूरित अपने फ़ोटो...
कॉल या मैसेज करो,तो ज़ोर से डॉटती है,
वो इस तरह से मेरे कलेजे को काटती है.....
-
जब मुझे पता चला कि तुम पानी हो,
तो मैं भीग गया सिर से पांव तक...
जब मैंने जाना कि तुम हवा की सुगन्ध हो,
तो मैंने इक श्वास में समेट लिया तुम्हें अपने भीतर ...
जब मुझे मालूम हुआ कि तुम मिट्टी हो
तो मैं जड़े बनकर समा गया तुम्हारी आर्द्र गहराइयों में...
जब मुझे पता चला कि तुम आकाश हो, तो
मैं फैल गया बनकर शून्य ...
और अब मुझे बताया जा रहा है कि तुम अग्नि हो,
तो मैंने खुद को बचाकर रख लिया है तुम्हारे लिए ...
आओ मुझे जलाकर मेरे प्रेम को परिपूर्ण कर दो...
@Unknown
-
अब...
जब मैं अनंत ऊंचाइयों पर था, तब जाकर तुमने बताया की प्रेम नहीं है ;
वैसे ऊंचाई इसलिए थी, क्योंकि चांद तुम्हारी जिद थी और तुम मेरी ।
अब जो गिरूंगा ,तो हड्डियों की तरह कई ख्वाब अरमान टूटेंगे;
बस किसी वृक्ष की पर्णहीन शाखाएं
मुझे सहारा दे, तो
मैं जीवित रहूंगा कमर से हृदय तक
अपने प्रेम को सत्य निर्धारित करने के लिए
.............(Taken)-