Sikandar   (सिकन्दर)
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Joined 21 July 2019


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AN HOUR AGO

टूटे हुए मरकद भी ज़रा देख ले चलके
तन्हाई में नक्शे मत बना ताजमहल के

क्या खबर थी इम्तहान इतने कड़े हो जाएंगे
मेरे आस्तीन के सांप ही मुझसे बड़े हो जाएंगे

तू पागल मुसाफ़िर मत समझ हम फकीरों को
गर नाव डूबेगी भी तो पानी पर खड़े हो जाएंगे

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AN HOUR AGO

तुझे खोने से डरता रहता था, घूंट ख़ून के पीता रहता था
एक आवारा मतलबी लड़का तेरी यादों में जीता रहता था
काश, समेटा होता तूने आकर जाने कितने हिस्सों में बंट गया
तू वही थी जिसके ख्वाब अपनी आंखों में संजोता रहता था

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AN HOUR AGO

मेरी आंखों का पानी न बन,
तू कोई बेरहम जवानी न बन
लैला का अस्तित्व ही मिटा दूं,
तू वो डरावनी कहानी न बन

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AN HOUR AGO

भविष्य उन्हीं लोगों के हाथ में है
जो अपनी जगह जानते हैं

क्योंकि जब हम अपने समाज की
आखिरी उम्मीद होते हैं तो
अमन एक सपना नहीं
बल्कि एक जरूरत बन जाता है

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3 AUG AT 12:36

बरसात है सबाब है
मौसम भी लाजवाब है

आए हैं सिकन्दर तुमसे
मिलने नदिया के पार से

अब सोने की कैंची से ही
लव खुलेंगे महबूब के

मेरा कातिल तो होंठ
सिएं बैठा है चांदी के तार से

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3 AUG AT 0:18

Happy Birthday to me
💓💓

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1 AUG AT 9:32

सिर्फ कहने सुनने से
यह बाजीगरी नहीं आयी है
ज़िंदगी जीने को अपनी
ज़िंदगी दाव पर लगाई है

तुम हम जैसे लोगों को
आजमाने की बात मत करना
हमने तो पत्थर भी
आजमाया है चोट भी खाई है

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1 AUG AT 9:24

आपको “सिकन्दर” ने निगाहों में बसा रखा है
यह आइना छोड़िए इस आइने में क्या रखा है
जिस पेड़ की छांव में हसीन वादे किए थे तूने
आज भी उस पेड़ की शाखों को हरा रखा है
जाने कब लौट के आ जाए वो बिछड़ने वाला
इक इसी उम्मीद से मैंने हर दरवाजा खुला रखा है

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31 JUL AT 17:03

चादर बदल बदल कर हर एक रात काट दी
मिट्टी के घर में ही हमने पूरी बरसात काट दी
वो सर भी काट देता अगर तो होता न हमें मलाल
अफ़सोस यह है सबके सामने मेरी बात काट दी

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31 JUL AT 17:01

पैग़ाम रोज प्यार का लेकर नए नए
आते हैं तेरी छत पर कबूतर नए नए

मत झांक खिड़कियों से जमाना खराब है
इल्ज़ाम लोग रखेंगे तुझ पर नए नए

दीदार तेरे हुस्न का करने के वास्ते
आया “सिकन्दर” भेष बदलकर नए नए

क्या फ़िर किसी अमीर को लूटा है आपने
आए कहां से तेरे जिस्म पे जेवर नए नए

सोलह श्रृंगार करके निकलती है जिस घड़ी
चलते हैं हर उस जगह पर खंजर नए नए

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