......बाँध सकें हम दोनों को किसी प्यार के ....... .........बंधन में ऐसा रिश्ता कबूल है हमें...... ......तुम्हारे जिम्मेदारीयों के बोझ में तुम्हारा कदम-से-कदम हाथ...... ..........पकड़कर साथ चल सकूँ वो रिश्ता कबूल है हमें......
लोक का भय मिथ्या है। कर्तव्य का निर्णय बाहर देखकर नहीं किया जाता। तुम्हारा निर्णायक तुम्हारे भीतर है। कौन क्या कहता है, कहने दो। तुम्हारा अंतर्यामी क्या कहता है, वही मुख्य वस्तु है।