देखकर जमाना इश्क़ फिजूल लगा,
बातों का ये सिलसिला बस एक मजाक सा लगा..!
जज्बातों को लेकर ये अहसासों का जहर लगा,
इश्क़ में सब गुमराह ये देखकर ये कहर पुराना सा लगा ..!
चाहे बात कोई भी हो इश्क़ सब की जुबा पर खेल लगा,
जाने मोहब्बत की गलियों में ये इश्क़ क्यूं बदनाम सा लगा..!
हर कोई जिक्र करता रहा महबूब की वो बेवफा सनम लगा,
मुझे भी ये इश्क़ का बाजार यहाँ पर अब व्यापार सा लगा..!
खुशियों का खजाना और मुस्कराहटों का सौदा लगा,
जाने इन खुशियों में आंसुओ का मोलभाव अदाकार सा लगा..!
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