तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था l
न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था l-
हर ज़र्रा चमकता है अनवार ए ईलाही से
हर सांस ये कहती है , हम हैं तो खुदा भी है
हंगामा है क्यों बरपा , थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला , चोरी तो नहीं की है
गुलाम अली साहब-
Tum aawaj do.
OR mai daurii chali aayun..
Na ye ummid na krna.
Mohabbat hun tmhari...
Gulam nhi 😌-
तुम रहो सलामत अब
हम रुख़्सती करते हैं
दुनिया का तो पता था
था ____
यक़ी तुझपर
तुझे भी आज़मा चुके
अब भूल सभी
रँजोगम
खुद की पनाह में
बसर करते है
-
मेरे ख़त बेनाम लिखे है तो आपकी नाराजगी कैसी,
है महफिल मे कुछ राज़दार ऐसे , खुशबु से जानते है।-
फासले ऐसे भी होंगे, ये कभी सोचा ना था।
सामने बैठा था मेरे, और वो मेरा ना था।
वो खुशबू की तरह फैला था मेरे चारो तरफ,
मैं उसे महसूस कर सकता था, छू सकता न था।
फासले ऐसे भी होंगे, ये कभी सोचा ना था।
रात भर पिछली ही आहट कान में आती रही।
झांक कर देखा गली में, कोई भी आया ना था।
फासले ऐसे भी होंगे, ये कभी सोचा ना था।
वो चढा रखे थे तन पर, अजनबियत के लिबास,
वरना कब एक दूसरे को हमने पहचाना न था।
फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था।
याद करके और भी तकलीफ होती थी हमें
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा ना था।
सामने बैठा था मेरे, और वो मेरा ना था।
फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था।।✍️
-गुलाम अली
-
जब भी आँखो में अश्क भर आयें;
लोग कुछ डुबते नजर आयें।
मुदते हो गई शहर देखे;
कोई आहट कोई खबर आयें।
चाँद जीतने भी गुम हुए सबके
सबके इलजाम मेरे सर आयें।
मुझको अपना पता ठिकाना ना मिलें,
वो भी एक बार मेरे घर आयें।
-
अमीरों के चेहरे में पर कभी
मुस्कान नही होती
गरीबों के चेहरे पर थकान
नही होती
सब कुछ खरीद सकती है दौलत
इस दुनिया में
पर शुक्र है मुस्कान
किसी की गुलाम नहीं होती-
कल शब मुझे बेशक्ल की आवाज़ ने चौंका दिया
मैने कहा तू कौन है?
मैने कहा तू कौन है?
उसने कहा आवारगी
ये दिल ये पागल दिल मेरा.....
-Mohsin Naqvi-