अब हक नहीं ज़माने को कि मेरा दरख़्त जाने,
मेरी सांस फ़ना हो जिसमें,
ताज्जुब वो भी मुझे फ़क़त जाने।-
लिखने की आदत
आवारा चाहत
बस इतनी शख्सियत
सवाल तो ये है , तुम्हें मुझे पढ़ना ... read more
बेचैन दिनों में मेरे कलम से इश्क की
दास्ता कोई कोरे कागज से पूछो ।-
जब देखा उसे मैंने वही वफ़ा देखा…
कई सवाल कौंधते हर दफ़ा देखा..
सोचा मिलूं तो पूछूं, वो भूल कैसे जाते हैं,
तमाम वादे तोड़कर भला मुस्कुरा कैसे पाते हैं..
वो किताब क़लम कोई कहानी तो याद होगी
फूल लिफ़ाफे कोई निशानी तो पास होगी…
बताओ ये पत्थर कहां खरीदें दिल में सजाने को
और किससे दिल लगाया हमें भुलाने को
देखो ये हुनर हमें भी सीखा दो,
हम ठहरे हैं, आगे का रास्ता हीं बता दो..
वो कल नाम सुना तुम्हारा, आंख भर आई
महीने भूलने में लगा, पल भर में तस्वीर उतर आई..
ऐसा नहीं कोशिश नहीं की फर्ज़े नहीं फाड़े..
पर तुम्हारे बाद सर सजदे में नहीं गाड़े
तुम थे तलब थी रवानी थी
वो वक्त दूसरा वो दूसरी जवानी थी
मैं ढूंढती हूं अब भी तुम्हें अपने किरदार में…
जैसे खो गए हो तुम दुनिया की बाज़ार में
चलो ठीक है इश्क़ न सही
दोस्ती तो चलती…
यूं मुंह मोड़ लेना बताओ ऐसी भी क्या ग़लती...
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इतनी नफरत जानिब किसी से क्या करोगे
बताओ फिर उसी से कैसे वफा करोगे
निकलेगी जब वो इश्क का कफन ओढ़ के
फिर क्या उसकी सलामती की दुआ करोगे....-
वो मेरा नाम नहीं लेता
दुनिया से छुपाता है
बंद कमरे का इश्क
खुले में नहीं जताता है
दुनिया जागीर उसकी
और मुझे गैर बताता है
नज़र दोष का डर उसे
मुझे किसी से नहीं मिलाता है
मेरी आंखें का आशिक वो
बाहर नजरे नहीं मिलाता है
उसकी राह तकती मैं
वो कभी वक्त पर नही आता है
दोस्त परिवार आजादी उसकी
मेरा सबकुछ खुद को ही बताता है
मुझे घर की रोशनी बताकर
वो गैरों का आंगन जगमगाता है
वो प्यार करता है मुझसे कहता है
और भीड़ में मुकर जाता है.....
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