Megha Upadhyay  
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Joined 2 August 2018


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Joined 2 August 2018
2 SEP 2024 AT 1:23

अब हक नहीं ज़माने को कि मेरा दरख़्त जाने,
मेरी सांस फ़ना हो जिसमें,
ताज्जुब वो भी मुझे फ़क़त जाने।

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2 SEP 2024 AT 1:19

बेचैन दिनों में मेरे कलम से इश्क की
दास्ता कोई कोरे कागज से पूछो ।

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27 JUN 2024 AT 23:05

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23 JUN 2024 AT 14:27

जब देखा उसे मैंने वही वफ़ा देखा…
कई सवाल कौंधते हर दफ़ा देखा..
सोचा मिलूं तो पूछूं, वो भूल कैसे जाते हैं,
तमाम वादे तोड़कर भला मुस्कुरा कैसे पाते हैं..
वो किताब क़लम कोई कहानी तो याद होगी
फूल लिफ़ाफे कोई निशानी तो पास होगी…
बताओ ये पत्थर कहां खरीदें दिल में सजाने को
और किससे दिल लगाया हमें भुलाने को
देखो ये हुनर हमें भी सीखा दो,
हम ठहरे हैं, आगे का रास्ता हीं बता दो..
वो कल नाम सुना तुम्हारा, आंख भर आई
महीने भूलने में लगा, पल भर में तस्वीर उतर आई..
ऐसा नहीं कोशिश नहीं की फर्ज़े नहीं फाड़े..
पर तुम्हारे बाद सर सजदे में नहीं गाड़े
तुम थे तलब थी रवानी थी
वो वक्त दूसरा वो दूसरी जवानी थी
मैं ढूंढती हूं अब भी तुम्हें अपने किरदार में…
जैसे खो गए हो तुम दुनिया की बाज़ार में
चलो ठीक है इश्क़ न सही
दोस्ती तो चलती…
यूं मुंह मोड़ लेना बताओ ऐसी भी क्या ग़लती...

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18 JUN 2024 AT 0:47

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18 JUN 2024 AT 0:31

....

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20 MAY 2024 AT 17:46

एक कतरे से बिखर जाता हो जो
वो समंदर से मिलकर तो मर जाएगा

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20 MAY 2024 AT 17:43

इतनी नफरत जानिब किसी से क्या करोगे
बताओ फिर उसी से कैसे वफा करोगे
निकलेगी जब वो इश्क का कफन ओढ़ के
फिर क्या उसकी सलामती की दुआ करोगे....

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19 MAY 2024 AT 1:13

वो मेरा नाम नहीं लेता
दुनिया से छुपाता है
बंद कमरे का इश्क
खुले में नहीं जताता है
दुनिया जागीर उसकी
और मुझे गैर बताता है
नज़र दोष का डर उसे
मुझे किसी से नहीं मिलाता है
मेरी आंखें का आशिक वो
बाहर नजरे नहीं मिलाता है
उसकी राह तकती मैं
वो कभी वक्त पर नही आता है
दोस्त परिवार आजादी उसकी
मेरा सबकुछ खुद को ही बताता है
मुझे घर की रोशनी बताकर
वो गैरों का आंगन जगमगाता है
वो प्यार करता है मुझसे कहता है
और भीड़ में मुकर जाता है.....


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18 MAY 2024 AT 23:38

वो सारी दुनियां से लड़ कर
मेरी बाहों में रोता है ..

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