ना हिर्स से मोहब्बत रही , और ना ही दुनिया से , वीरान होने को जी चाहता है,
दुनिया में सोना चांदी तलाशके भी , राख कब्रिस्तान होने को जी चाहता है,
कौन क्या मुझे तो हाल फिलहाल मैं ही नही समझ पा रहा क्या चाहता हूं मैं
बस जीते जी सारी जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद मर जाने को जी चाहता है
हिर्स -लालच, हवस, लोभ, वासना,
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Talk to me at Your Own Risk
हमको किसके ग... read more
जो समझना ही न चाहे , उसे क्यों समझाया जाए
उसकी नादान बातों को दिल पर क्यों लगाया जाए
वो तो नासमझ हैं इसलिए बचकाना ही सोचते हैं
दिल के रिश्तों में आखिर दिमाग क्यों लगाया जाए-
अपनी अंदर की तकलीफ और तबीयत थोड़ी बहुत ही किसी से कहता हूं
उस सूरज की गर्मी तो सब झेलते हैं, मैं तो अपनी तपिश ही सहता हूं
अब किसी से कोई वास्ता नहीं बस अपनी ही मौज में बहता हूं
किसी ज़माने में लापरवाह हुआ करता था , अब बेपरवाह ही रहता हूं-
ये दुनियावी रिश्तों और उसूलों का वास्ता देकर मुझे क्यों सता रहे हो
खुद को मुझसे अलग समझ कर क्यों मुझे और तड़पा रहे हो
वाहेगुरु भी आ गए और राम भी, मुझसे उनका नाम भुलाने के लिए
उन्हें भी कोरा जवाब है मेरा लेकिन तुम मुझे क्यों उनसे अलहदा करवाना चाह रहे हो
मुझे अपनी दुनियावी बातें सिखाने की कतई कोशिश न करो
मैं राम नाम नही छोडूंगा लेकिन तुम मेरे झूठे रिश्ते गिनवाए जा रहे हो
मेरी तो रूह जुड़ चुकी और पीकर भी सिर्फ़ उसी को याद करूंगा दंगा नहीं ,
लेकिन एक बात बताओ तुम क्यों मुझे तपाक दिखाए जा रहे हो-
रूहानी और सूफियाना नशा है मेरी आंखों में,
तुम इसे शराब का खुमार समझते हो क्या
आज शिद्दत से मुझमें दिलचस्पी लोगे, कल भूल जाओगे ,
मुझे रद्दी के भाव बिकने वाला अखबार समझते हो क्या
हिसाब करोगे मेरे होने या न होने के फायदे और नुकसान का ,
मुझे अपना कारोबार समझते हो क्या
और जब जी चाहा मज़े ले लोगे मेरी फकीरी के ,
मुझे हफ्ते का इतवार समझते हो क्या
आप कहते हैं मुझे अल्फाज़ मिल जाते हैं मेरी बात कहने के ,
तो मुझे शायरी का पुलिंदा तैयार समझते हो क्या
तुम्हारी किसी भी बात पर हस दूं और बुरा न मानूं
मुझे तुम अपना यार समझते हो क्या
जब तुम्हारा मन करे चढ़ जाओ तेल पानी के साथ
मुझे अपनी कार समझते हो क्या
मेरे बिदकने पे तुम्हारी किसी मीठी या कड़वी गोली से ठीक हो जाऊं
मुझे कोई मौसमी बुखार समझते हो क्या
सिर्फ़ दर्द तकलीफ़ या झगड़े में ही मुझे इस्तेमाल करोगे ,
मुझे मरहम या हथियार समझते हो क्या
और वक्त आने पे बिना किसी देरी के तुम जैसा बदल जाऊं
मुझे मौसम या ये संसार समझते हो क्या
मेरे ही सामने मेरे दुश्मन खुदा से दुआ मांगोगे
मुझे ख़ाकसार समझते हो क्या
खुदा भी हूं तो बस खुद और खुदा के लिए ,
तुम्हारे लिए किसी को भी सज़ा देने पे आ जाऊं
मुझे हर बार बदलने वाली सरकार समझते हो क्या???-
हम सिर्फ़ एक आशिक़ हैं तो हमें सियासत क्यों सिखाई जा रही है
हम तो मशगूल हैं अपनी ही दुनिया में ,हमे ये बेतुक्की दुनिया क्यों दिखाई जा रही है
माना कि कुछ एहसान हैं उनके हम पर उतार भी देंगे वक्त रहते
लेकिन उन एहसानों के बदले चाहें तो ब्याज़ लें , हमारी कमियां क्यों गिनवाई जा रही हैं
हर बात में बगैर किसी बात के हमें हमारी औकात क्यों दिखाई जा रही है
सांस से लेकर रूह तक सिर्फ़ उनका ही हक है , ये बात बार बार क्यों बताई जा रही है
हथियार सी ज़ुबान खुदा ने हमे भी दी है, कर दें एक ही पल में ज़ख्मी उन्हें
ये बात जानते हुए भी हमारी शक्सियत न जाने क्यों आजमाई जा रही है
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पीकर भी इबादत होती है ,, ये भी महज़ उनका हमे ताना निकला
दुनिया तो बस मतलब की है , वफादार तो बस मयखाना निकला
हर कोई कैद करना चाहता है हमें अपनी दकियानूसी पिंजरे में
क्या करें कैद हैं कुछ दिन क्योंकि कैद करने वाला भी हमे दोस्त पुराना निकला
कोई फर्क नहीं पड़ता किसी को कि मैं क्या सोचता हूं और कहां खुश हूं
कर भी क्या सकता हूं उनके सिवा , ये सोचकर मेरे हाथ से ज्यादा कमाना निकला
उन्हें तो एहसास भी नहीं मेरा उनसे नाराजगी का क्योंकि कुछ कह नहीं सकता
उड़ने की हिम्मत होते हुए भी उन्हीं के पिंजरे में कैद हुए एक ज़माना निकला
अब ताकत आई है उनकी बुरी नीयत देखकर उनके खिलाफ जाने की
क्योंकि जिनके भरोसे खिलाफ हुआ , उनका दिलासा भी महज़ बहाना निकला
पंख होते हुए भी उड़ने के लिए सही वक्त का इंतजार कर रहा हूं मैं
क्योंकि अब मेरे आंसू और पसीने में उनका नमक हर्जाना निकला
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आपसे क्या मैं तो अपनी आत्मा से भी विरक्त हो चुका हूं
किसी ईश्वर भगवान इंसान को छोड़ कर स्वयं का ही भक्त हो चुका हूं
शायद अपने आप के अंदर ही अब आसक्त हो चुका हूं
क्योंकि सारे अपने और पराए दुनियावी रिश्तों से मुक्त हो चुका हूं।-
क्या अपनी काबिलियत बताने के लिए अपनी काबिलियत बताना ज़रूरी है
क्या खुद की इंसानियत दिखाने के लिए इंसानियत दिखाना ज़रूरी है
दुनिया तो हमारे खिलाफ थी , खिलाफ है और रहेगी भी पूरी उम्र
फिर भी क्या दुनिया को जवाब देने के लिए हाज़िर जवाब हो जाना जरूरी है-
क्यों कोई अपनी ही लगाई आग पर अपनी ही रोटियां नही सेकता
मेरी कमियां तो सब देखते हैं कोई अपने आप को क्यों नहीं देखता
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