हंसिया खुरपी कोलपा , रहा न इनका साथ ।
हल से अलग फार हुआ , अब बैल हुए अनाथ ।।
टूटी मेड़ खेत की , पानी बरसा रात ।
डांठ नीचे धर गई , फसल हुई बरबाद।।
उठ भोर ही दौड़ा,देख बारिश घनघोर।
मेड़ को बांधने लगा ,छिदे हाथ के पोर।।
घाव हृदय में हुआ ,फसल हुई सब धूल ।
हार किसान आज गया , फिर पेड़ से झूल ।।
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