शिल्पी ( मनोभावों का)
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सुख औंधे मुंह पड़ा है,
दुःख सिर पर चढ़ा है ,
पीड़ा दिल पर सवार हो ,
धमनियों से होकर
दौड़ रही पूरी देह में ,
मुस्कान पर हंस रहा है
रुदन ,
क्षुधा और तृष्णा से
मिल गए हैं छाती और
घुटनें ,
आंखों की अश्रु सूख कर
कोर में मोती सी चमकती है ,
यह दशा है उस शिल्पी की
जिसने बनाएं थे
यह सारे मनोभाव
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