वो सारे ही मिलन हमारे , आंखों के सुंदर सपने हैं
वो सारे एहसास तुम्हारे अपने ना हैं पर अपने हैं
जहां बैठकर हंसी-ठिठोली करते उस मंदिर में तुम हो
देखो श्याम की मूरत राधा अब भी उसके उर में तुम हो
कैप्शन में पूरी कविता पढ़ें।-
◆सहमी - सहमी सी महफ़िल में मुट्ठी भर खुशी लुटाता हूँ,
जो जख्म... read more
एक चेहरा जिसे पलको पे सजा रखा था
अब एक याद है रातों को जगा देता है
मैं कितने साफ लफ्जों में ये तुम्हे लिखता हूँ
एक तू है इसे गैरो को पढा देता है-
एक नाम लब पे आया और आंखे बरस पड़ी
मैं खुदमे कितने दर्द लिए बैठा हूँ
यूँ ही यादों में आकर वो उधेड़ जाते है
जिन जख्मों को मैं मुश्किल से सीए बैठा हूँ
वो खुश है अच्छा है यही तो माँगा था
मेरा क्या है मैं तो पिये बैठा हूँ
और अपने हिस्से की खुशी बेच दी उसको मैंने
मैं एक पलड़े पे कुछ ग़मों को लिए बैठा हूँ
कोई पूछे तो कह देना यूँ ही कहता है
और मेरा क्या है मैं तो पिये बैठा हूँ-
क्या लिखूं मैं आखिर तुम्हारी याद में
ये आंसू कम है क्या मेरी दास्ताँ सुनने को-
अब हमें अकेले चांद देखता देख चाँद भी कहता होगा
इक चाँद गंवाकर चाँद देखने वाले आखिर तुम कैसे हो-
उसकी खातिर ये चेहरा अब कोरा ही रखेंगे हम
वादा था उसका वो सबसे पहले रंग लगाएगी
ये कैसी होली आयी है बिन उसके
आंखें नम है, आँसू में खेली जाएगी
क्या ख्वाहिश होगी मेरी होली पर अब
सारी की सारी तुम बिन मर जाएगी
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मेरे अंदर ही घुट रही है शख्सियत मेरी
मौत आती कहा है हिज्र में वफ़ा करने-
ये रात के 3 बजे तक लिखने से क्या होगा
हाँ गर कुछ उस तक पहोंचे तो बात और है
अब दिए बुझाने भर से नींद कहा आती है
हां तेरा ख्वाब गर आये तो बात और है
यूँ तो चुपचाप ऊपर को देखता हूँ मैं
खबर ये चांद गर तुमको बताये तो बात और है-
अब हमको उनकी गलियों से क्या मतलब
जिसमे मेरा आना जाना नही रहा
क्या मतलब उन शामों से और टहलती राहों से
तेरे बिन अब उस मंदिर में कोई खजाना नही रहा
क्या मतलब है मेरे इत्र की खुश्बू का
जब इसका चर्चा तेरे घर पर नही रहा
कोई पूछे अब तो उसको बतलाना
उसके बाद अब वो दीवाना नही रहा-
खुदको कैसे जिंदा रखकर खत्म करूँ
मेरे पास ये मजबूरी और जिम्मेदारी है
एक तरफ है हिज्र के जिसमे मरना लाजिम है
एक तरफ माँ बाप है जिनका कर्ज उधारी है
मुझको बतलाओ यारों मैं कैसे फंदा चूमुं
नीरस सा जीवन लेकर आखिर किस रस में मैं झुमुं
एक घुटा हुआ सा सख्स फसा है कबसे मेरे अंदर ही
किस ठौर-ठिकाने चले पथिक ये बोझ बड़ा ही भारी है
इस शिशु की अब फर्ज निभाने की अंतिम तैयारी है
खुदको कैसे जिंदा रखकर खत्म करूँ
मेरे पास ये मजबूरी और जिम्मेदारी है
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