QUOTES ON #FAKIR

#fakir quotes

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29 APR 2021 AT 10:57

अमीर अपनी कामयाबी के किस्से
और काली कमायी को गिन रहे थे.

साथ में बैठा फकीर अपने हिस्से की
रोटी किसी भूखे को देके चला गया.

खुदा के घर का मजहबी नहीं था वो
तभी आँखों में खुशी देके चला गया.

गिर चुके है खुदा की नज़रों से वो लोग
वो परिंदा पिंजरे में जां देके चला गया.

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25 MAR 2019 AT 23:14

जद्दोजहद भरे इस ज़माने में ,
उम्र बीत जाती है इश्क़ कमाने में ||

बहुत सुकून था मेरे बचपन में ,
खुशियाँ खरीद लाता था चार आने में ||

कौन कहता है आब ज़रूरी है ,
लोग गम पी जाते है मेह्खाने में ||

वो कहते है मुसीबत में दिखते नहीं लोग ,
कभी खुद भी तो दिया जलाओ शामियाने में ||

परिंदा उड़ा और खुद आसमां बन गया ,
सर ऊँचा नहीं हुआ किसी का किसी को झुकाने में ||

हक़ीक़त खुद आँखों से नींद खा गयी ,
ख्वाब खुद सोते रहे बिस्तर के सिरहाने में ||

जाने कैसे ढूंढ लेते है लोग जीने का मकसद,
ज़िन्दगी कट गयी हमारी उनकी यादों के आने जाने में ||

दुनिया का दस्तूर समझा नहीं मैं , बस समझा ,
जलना खुदको पड़ता है किसी और को जलाने में ||

"फ़क़ीर" ने ये सोचकर दिल्लगी छोड़ दी ,
आजकल दिल भी बनते है कार खाने में ||

आब : पानी

#फ़क़ीर

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16 FEB 2019 AT 23:18

ज़िसकी तकमील ना हो ,
ऐसा कोई ख्वाब नहीं ||

गणित तुम्हारी ठीक होगी ,
हमारी मोहब्बत का हिसाब नहीं ||

ज़िसमे ज़ज्बात ही श्याही हो ,
हमने पढ़ी वो किताब नहीं ||

ज़ो नशा अब मुझे करा सके ,
काबिल ऐसी कोई शराब नहीं ||

तुझसे मिले नहीं पर सोचे ना ,
हालात हमारे इतने खराब नहीं ||

"फ़कीर" की ज़िन्दगी का फलसफा हैं ,
हमारे यहाँ तजूर्बे का कोई निसाब नहीं ||

#फ़कीर

तकमील : पूरा
निसाब : पाठय्क्रम

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20 SEP 2018 AT 22:01

इन आँखों में एक बवाल लिए चलता हूँ ,
ज़हन में कितने सवाल लिए चलता हूँ ,

एक उम्र लग गई सूखे अश्कों को मिटाने में ,
अब तो इन जेबों में रुमाल लिए चलता हूँ ||

#फ़कीर

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15 JUL 2019 AT 9:33

मेरे लिए...
        आरंभ क्या! अंत क्या!
        अंत ही आरंभ है
        आरंभ का ही अंत है
        मैं ही आरंभ करूँ , मैं ही अंत करूँ
        एकल सत्य है- मैं एक 'फ़क़ीर' हूँ।
मेरे लिए...
सब  'शून्य' है
हाँ मैं...
     शून्य हूँ...!!    फ़क़ीर हूँ...!!
     फ़क़ीर हूँ...!! फ़क़ीर हूँ...!!

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25 OCT 2021 AT 15:46

फकीरी से उठी हूँ
मैं फकिरी का दर्द जानती हूँ ,
आस्माँ से ज्यादा
मैं जमी को मानती हूँ _
सब कुछ सहना आसान नहीं होता ,
सब्र कितना जरुरी है
खुद को संभालने के लिए
मैं बखूबी जानती हूँ _
बेवक़्त , बिनवजय ,
और बेहिसाब मुस्कुरा देती हूँ ,
मैं जलने वालो को
कुछ यूं जला देती हूँ _
क्या पाया - क्या खोया
मुझे परवाह नहीं
कल सब राख़ होना हैं ,
मैं जानतीं हूँ.........................................................................》

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9 MAR 2021 AT 20:35

ग़ालिब तेरी मोहब्बत में कुछ ऐसा इंतजाम हो गया ,
कि जुबां पे तेरा ही नाम लिए जोगी सा फिरता रहता हूं...!!!

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25 APR 2020 AT 21:34

मन्दिर के सामने एक अमीर भंडारे करने की कसमे खा रहा था...
और सीढियों पे बैठा फ़कीर एक रोटी के लिए तड़प रहा था।।।।।

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28 JUN 2020 AT 6:56

या तो मुकम्मल चालाकियां सिखाई जाए,
या फिर मासूमों की अलग बस्ती बसाई जाए...

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6 DEC 2020 AT 20:58

हम चलते मुसाफिर इस राह के;
हमारा बसेरा औरो सा कहा,
तप्ते खुद की इबादत में ए सितम;
एक फकीर का सवेरा होता हैं कहा !!

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