एक पल में कई सदियाँ जीनी हैं तेरे गोद में अपना सर रख कर,
की क्या पता तू फिर मिले या ना ,या तू मिले तो मैंने ना रहु,
इस पल के लिए ही बिरहा की कई राते काटी हैं तो तेरी गोद ,मेरी आँखों को चैन मिले …!!!-
उसने पूछा मुझसे क्या सोचते हो मुझे देख कर : फिर मै बोलता गया और हाँ हम्म करती रही रात भर मेरे गोद किसी बच्चे की तरह…
मै ये सोचता हूँ तुझे देखने के बाद लोग होश में कैसे रहते हैं |
मै ये सोचता हूँ लोग तेरी बाते सुनने के बाद उनको शराब का नशा कैसे होता हैं |
मै ये सोचता हूँ लोग इत्तर क्यों लगाते हैं तुझसे मिलने के बाद |
मै ये सोचता हूँ हवाएँ ख़ुद को कैसे संभालती हैं तुझे छूकर |
मै ये सोचता हूँ लोग तेरे माथे पर बिंदी देख कैसे चाँद को खूबसूरत बोल सकते है ।
मै ये सोचता हूँ लोग तेरे चेहरे की लाली देख कैसे जुगनू हाथों में पकड़ लेते ।
मै ये सोचता हूँ वो शक्स रसगुल्ला कैसे खा गया तेरे होठ चूमने के बावजूद ।
मै ये सोचता हूँ लोग तुझे खुले ज़ुल्फ़ों में देख बादल की तारीफ़ कैसे कर सकते हैं ।
मै ये सोचता हूँ लोग तेरी आँखों में देखने के बाद समुंदर को गहरा कैसे बोल सकते हैं ।
मै ये सोचता हूँ की देखने वाले ने तुम्हें किस नज़र से देखा की साहज़हा बन गया ।
की मेरी नज़र ने जभी देखा तुमको तब तब दशरथ मांझी समझा…!!!-
सूरज की सुबह की लाली तुम ओस की बूंदों पर पड़ने वाली |
हिमाचल की तरह सुबह को तुम्हारी नजरे मुझपे गिरती कई शृंगार किए |
उन शृंगार के नशे में मैं दिन गुजारता फूलों की तरह कभी मुरझा कर तो कभी खिल कर |
तेरी जिस्मों की गर्माहट में ख़ुद संभालता पेड़ों की चादर में |
की ऐसे में तू देख मुझे ख़ुद गुस्से में और लाल हुआ करती हैं |
फिर भी तू शाम को जाते वक्त गुस्से में भी मेरा साथ ना छोड़ती हैं |
जाते जाते भी तू हिमाचल की तरह मुझे देखते हुए अपनी निगाह बंद करती किसी बच्चे की तरह शरारतें करते हुए,
कि जाते जाते आँख मिचौली करते करते तू रात को छत पर मिलने के संकेत दे जाया करती हैं…!!!-
मुझे तेरे उस कंगन से जलन हैं ,
मुझे तेरे उस दुप्पटे से जलन हैं ,
जलन मुझे उस हवा से भी हैं जो तुझ से गले मिल कर जाती पर ख़ुशी हैं मेरा पैग़ाम भी तुझ तक पहुँचाती हैं,
पर मुझे तेरे उस झुमके से दुश्मी हैं
जो दूर तेरे बदन में होते हुए भी तेरी गालों को अक्सर छू कर गुजरता हैं और तेरी ज़ुल्फ़ों से खेलता हैं…!-
तिनको तिनको जिनको पाया था ।
शायद कोई हमसे बेहतर उन्होंने या उनके घरवालों ने खोज रखा था ।
की कभी अपनी मजबूरी की ।
तो कभी मेरी कमियों का सहारा लेकर ,
वो तिनको तिनको में चली गई…!!!
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किताबों में जो पढ़ा था जो सुना था एक रानी की कहानी तुम मुझे वही लगती हो,
तुम्हारे नाक बाल होठ कमर वो गालों के पास का काला तिल हाँ तुम बिल्कुल वही लगती हो,
तितली सी चंचल तितली सी उड़ान भर मेरी दिल पर बैठ जाती तितली सी इठराती हो हाँ तुम बिल्कुल वही किताबों वाली रानी लगती हो,
खामोश रह कर मेरी बातों संग खेलती हो,
मेरी हर बात को दिल से लगा बिल्कुल कोयल के जैसी झगड़ती हो हाँ तुम बिल्कुल वही किताबों वाली रानी लगती हो,
उड़ती आसमान में हो अपने खवाबों को लेकर लेकिन अपनी रखती हर निगाह हो मुझे पर बाज़ जैसी, तुम ऐसे में भी कितना ख्याल रखती हो मेरा, हाँ तुम बिल्कुल वही किताबों वाली रानी हो,
चिपकी रहती हो मधुमक्खी सी ख़ुश्बू लिए हज़ारों फूल की मुझ पर बिखेरने को, छोड़ती नहीं हो लड़ जाती हो उनसे जो भी छूते हैं मुझको, हाँ तुम बिल्कुल किताबों वाली रानी हो…!!!-
समंदर सी खामोश वो कई ज़ख़्म लिए
मैं कोई किनारा सा खड़ा आँसू पोछने को उसके…!!!-
इस दिल की बोली लग चुकी हैं सालों पहले,
खरीदा हैं किसी ने इसको ऊँचे दामों में
कि अब कोशिश करने वाले नाकाम हो जाते हैं,
की ख़रीदार ने मर्यादाओं की दीवाल बंध रखी हैं…!!!-
तू मेरी सरकारी नौकरी जैसी हैं,
ये जवानी तेरी ढल्ल जाएगी फिर भी इसका नशा पेंशन के तरह लेता रहूँगा जब तक ज़िंदा रहूँगा…!!!-