■ ज़वाब ■
सवालों के घेरे में एक 'ज़वाब' था,
ज़वाब बेहद परेशान था।
मैं किन-किन सवालों का ज़वाब बनूँ?
अब ज़वाब के पास भी एक सवाल था।
वर्तमान जब भविष्य तक पहुँचेगा,
सबसे पहले ज़वाब को ही ढूँढ़ेगा।
ज़वाब को तैयार रहना पड़ेगा,
कोरे काग़ज की ज़मीन पर।
PRAKASH SAH
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☆¤¤°•°•°• Think Deeply •°•°•°¤¤☆
भाषा : भोजपुरी❤
कागज़... read more
हूँ मैं अगर खड़ा, किसी शजर की तरह लगभग।
मतलब कई तूफानी यार मिलें होंगे अब तक।
लोग चुनना मुझे पसंद नहीं, जो हैं वही रहेंगे अंत तक।
मुश्किलों से भरे दरिया में, नाव मैं बदलता नहीं अक्सर।
PRAKASH SAH
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कभी-कभी साँसों को
अटका कर रखता हूँ,
कुछ बातें छिपाकर रखता हूँ।
दिन ढ़ल जाता है,
सुबह भी रोज़ जल्दी आ जाती है,
पर जो बातें ज़ेहन में रहती है,
वो बातें कभी कहाँ बाहर आ पाती है!
PRAKASH SAH
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सुना हूँ तुम लिखते हो।
क्या तुम लिखना चाहते हो?
लिखो...।
पर उस विषय पे लिखना मत,
जिस विषय पे विवाद मचा हो।
सुना हूँ तुम परिभाषित हो।
क्या तुम धर्म बनना चाहते हो?
बनो...।
पर देश बँटा है,
तुम बँटना मत।
देश में कत्लेआम मचा है,
तुम कत्लेआम मचाना मत।
PRAKASH SAH
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मेरा मन
कुछ सपनों में खोया है,
कुछ हकीकतों में ज़िंदा है।
मेरे अंदर
कुछ फर्फराते परिंदें हैं,
इन परिंदों से पूछ लेना
इन्होंने क्या-क्या सहा है।
PRAKASH SAH
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□ कार्यालय_डायरी □-
■□ उम्मीदें □■
जब किसी से उम्मीदें टूटती है ना!
तो तुम्हारी उम्मीदें खुद में बढ़ती है।
इसलिए अगर मैं
तुम्हारी उम्मीदें तोड़ने वालों में से बनता हूँ,
तो पूरी नहीं, बस आधी ही उम्मीदें तोड़ पाऊँ।
जिससे की तुम,
उन आधी खाली बची उम्मीदों को
तुम खुद भर सको।
क्योंकि किसी का किसी पे
विश्वास यूँ ही टूटना नहीं चाहिए।
इस दूनिया का आधार ही विश्वास है,
जैसे की विश्वास है कि ऊपर वाला अस्तित्व में है।
PRAKASH SAH
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■□ बस रूक जाला एगो तिनका के सहारा खातिर □■
एगो चाँद के कोना तोड़ले रहनी,
आपन इश्क के आसमान बनावे ख़ातिर।
तोड़ले रहनी हर दिन एगो तारा एमे से,
आपन इश्क के माँगे खातिर।
एकरा के आपन दूगो नैनन से खूब निहरले रहनी
आपन ख्वाहिश के सच बन जाए खातिर।
जब टूट जाला सारा तारा इश्क के,
आवेला जुगनू रात में तारा बन जाए खातिर।
मन के पंछी चाहेला आसमान के हद छू लीं,
बस रूक जाला एगो तिनका के सहारा खातिर।
PRAKASH SAH
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Bhojpuri Poem-
तूफानी ज़िंदगी में
एक बरकरार चिराग की ख़्वाहिश है।
वहाँ दूर कुछ दायरे में इकट्ठी
एक रौशनी वाली रात है।
चलो पास जा कर वहाँ देखते हैं,
वो रौशनी
किसी की मेहरबानी से है,
या फिर उनके हिस्से की चाँद वाली रात है।
PRAKASH SAH
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कई दफा ज़िंदगी को देखा है मैंने बहुत नजदीक से
कोई बहुत पास रहते हुये भी लगते हैं बहुत दूर मुझसे
PRAKASH SAH-
■□ वन मेला □■
वन मेला दिख गया, फूल-पत्तें नाच रहे थें
मैं उनके पास गया, वो सुकून बाँट रहे थें
रूनझूण-रूनझूण आवाजें, जमीन पे ससर रहे थें
बुजुर्गों जैसे डाँटकर, सूखे पत्तें कुछ समझा रहे थें
बादल आये थें चुपके से, मैं उलझा था वन देखने में
भर झोली लाये थें पानी, सबको नहलाकर चले गये
जंगल से ही जीवन है, तुम मुझे क्यूँ सिमटा रहे?
शहर में मुझे शामिल करो, शहर से क्यूँ हटा रहे?
PRAKASH SAH
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