मैं जब भी घर से निकला आरज़ू पूरी लेकर ... read more
इतनी जर्द हो गईं है आंखें,
कि हर दर्द मरहम सा लगता है ,
वो अब शोर में दब जाती है सिसकियां,
इस भीड़ में भी तन्हा सा लगता है ||
#फकीर
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खुद से खुद को शायद मिला नहीं पाया ,
क्या चाहिए खुदको समझा नहीं पाया ,
बहुत कुछ पाने की चाहत में बहुत कुछ खोया,
तुम तुम्हारा तुमसे में "मैं" को समा नहीं पाया ||
#फकीर-
वाक़िफ तो हूं मैं दुनिया के तौर तरीकों से , पर
किसी की इबादत में ज़ाहिल होना सबसे हसीन लगा||-
हमें क्या मालूम था जिंदगी आज क्या लाएगी,
एक दोस्त ने कंधे पे हाथ रखा और कहा "चल देखी जाएगी " ||
#फकीर-
वो जो कहते है कि आज सुकून की नींद सोए हैं ,
एतराज है हमें, लगता है दुनिया में अब मुहब्बत नहीं रही ||
#फकीर-
जिस्म से रूह तक का सफर , इश्क ,
होठों से आंखों तक का सफर , इश्क ,
मौत आने से पहले मरना गलत है ,
जिंदगी से जिंदगानी तक का सफर , इश्क ||
#फकीर-
देखो यूं मैं बुरा बहुत हूं,
ज़ख्म हूं और हरा बहुत हूं,
चेहरे पे मुस्कान लिए फिरता हूं,
ऐसे दर्द से भरा बहुत हूं ||
#फकीर-
वक्त बेवक्त उलझें हुए रिश्ते ,
छोटे छोटे कंधों पे बड़े बड़े बस्तें,
आसान हुआ करती थी इंसानियत,
अब खो से गए है बशर में फरिश्ते ||
बशर : इंसान
#फकीर-