ये सावला रंग तेरा;
न जाने कितनो को कायल कर गया,
हम अपने वजूद को धुंडते ही रहे;
और उसके सपनो ने हमे घायल कर दिया...!-
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कुछ चंद अल्फा... read more
कूछ गहराईंया ही नाप लेती;
जबान से अपनी,
हम हद मैं क्या रहे;
वह जरुरत से ज्यादा लंबी हो गई...!
हम खामोश रहे इश्क समज जालीम;
और वह आसानी से हमे फिराबाझ कह गई !!-
कूछ अजनबियोंका असर;
युंह रहा जिंदगी मे,
आए, दिखे, मिले और मिलकर
पराये हो गए...!
यह रिश्ता निभाना न आसन रहा;
हम कसूरवार जो उस्के;
अश्फाकों के हो गए...!!-
हम जीस किस्मत को कोसते रहे;
न जाने वह कितनो का सपना था;
हम अधुरे तुम बिन ही सही,
इस जुस्तजू मे कसुर अपना ही था...!-
कोई जलाता ही नही;
चिराग सलिके से जालीम,
सभी को शिकायते बस;
हवाओं से क्यूँ हैं....!-
हा कहू या ना कहू;
अजब दुविधा हैं,
इश्क किया फरो के माफिक;
और अब वह शर्मिंदा हैं....!-
हैं आती हसी तेरे कस्मो पर अब तो;
ए वादो से अपणी मुकर जाणे वाले,
ना जन्नत की चाहत ना जोजक का डर हैं;
हैं होते बोहत बेखबर जाणे वाले...!-
हसकर किसी ने निखारा;
आंसूओ को किसी ने सवारा,
अरमानो की क्या कहे जाबित;
हम ने हमी को ही बिखरा...!-
अंधेरे मे खो ना जाओ
कही एक दिन तुम,
उससे पहले उजाले मे
रोना सिख लो...!
-
नाराजगियों का भी;
कुछ हिस्सा रहा होगा जिंदगी में,
वरना युंही नहीं हर कहानी मे;
किस्से हुआ करते....!-