जाति पूँछते साधु की,भूल गये सब ज्ञान।
जंग लगी तलवार में,चमक रही है म्यान।।-
प्यार मोहब्बत मिट गया, चटुकारिता चहुँ ओर
बगुले करते राज अब, गया हंस का दौर.-
हे गणनायक गौरिसुत ,
हे गजवदन गणेश ।
कृपा सिंधू करुनायतन ,
काटो कठिन कलेश।।-
दोस्ती करो तो धोखा मत देना,
दोस्त को आँसुओं का तोहफा मत देना।
दिल रोए कोई तुम्हें याद करके,
ऐसा कभी किसी को मौका मत देना।
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'ख़ाक' लड़ रहे लोग सब, पूछ पूछ कर ज़ात
राम , ख़ुदा हैरान हैं, नाज़ुक हैं हालात।।-
रैदास प्रेम नहिं छिप सकई, लाख छिपाए कोय।
प्रेम न मुख खोलै कभऊँ, नैन देत हैं रोय॥
रैदास कहते हैं कि प्रेम कोशिश करने पर भी छिप नहीं पाता, वह प्रकट हो ही जाता है। प्रेम का बखान वाणी द्वारा नहीं हो सकता। प्रेम को तो आँखों से निकले हुए आँसू ही व्यक्त करते हैं।
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काट दिए हैं पेड़ सब, कहीं नहीं है छाँव
कहते सीना ठोक कर, बदल रहा है गाँव।।-
घूम न पाया तीरथ धाम, घूम न पाया काशी।
हृदय में सब छवि बनाई, हुआ मैं हृदयवासी॥-
लिखने चला जो प्रेमरस, देखा पिया के ओर
उनमें ही मैं डूब गया और मिला ना कोई छोर-
रेल पर दोहा
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सांप नहीं ये रेल है, इसका देखो खेल
चलता जैसे सांप है, औरों से क्या मेल-