मन आहत है देखकर , अपना ही व्यवहार। मनुज दनुज सा हो गया , करता ह्रदय विचार।। करता ह्रदय विचार , उन्हें आखिर क्या देते। भोजन की क्या बात , स्वांस तक जिनसे लेते।। कह केतन महराज , कठिन है करना वर्णन। कितना निष्ठुर आह , हो गया है मानव मन।।— % &
समय बदला तो देखा लोक के व्यवहार बदले है हकीकत है कि ये हालात भी कई बार बदले हैं मगर देखूँ जो हालत राजनीति की तो लगता है कथानक है वही हमने महज किरदार बदले हैं— % &
बराबर सबको करने के ये गर्मी धूप जरिया हैं समुन्दर से मिलेंगे अंत में मजबूर दरिया हैं गोरे हैं परेशां किस तरह से गर्मियां गुजरे करिया सोचकर खुश हैं कि हम पहले से करिया हैं— % &
पास तुम्हारे आकर अपना वक्त सुनहरा करना है रंग लगाकर तुमको प्रियतम नेह ये गहरा करना है लेकिन एक समस्या यह है यह इतना आसान नहीं तुमको अभी मनानी होली हमको पहरा करना है— % &