"मैं क्यों हूँ और कौन हूँ"।
मैं छोड़ आता हूँ अपने लाडले को रोज़ साईकल से स्कूल,
एक बेटी है मेरी, बस रोटियां सेंक के हाथ जला लेती है।
मैं ले आता हूँ , एक बड़ा टेडी बेयर अपने इश्क़ के लिए,
एक बहन है मेरी, बस चुपचाप अपना खत छुपा लेती है।
मैं सो जाता हूँ, जाने किस किस के संग ,उन चार दिनों में,
एक पत्नी हैं मेरी , बस पाँचवे दिन चुप चाप संग लेट जाती है।
मैं चिल्ला देता हूँ , जब भी खाने में नमक कम होता है।
एक माँ है मेरी, बस अगले रोज़ गलती सुधार लेती है।
मैं संदेह करता हूँ ,उसके हर काम पर ,त्याग पर ,सहनशीलता पर,
वो नारी है, बस मन की मन में रखे जी लेती है।-
Written by Harshita ✍️✍️
#Jazzbaat
औरत एक सौनामी है।
औरत एक अंदर आग है।
औरत गहरी नाभि से निकलती
ज्वाला है।
औरत अभिमान है।
फिर भी औरत बदनाम क्यूं?
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वो सारी तर्कशीलता,
बुद्धिमत्ता,
आज़ादी और चंचलता ,
जो एक बेबाक लड़की की
खुली जुल्फों में बेफिक्री से घूमती हैं...
चुटकी भर सिंदूर पड़ते ही कस के बाँध दी जातीं है
एक बेबस, लाचार, बेवकूफ़ सी औऱत के जूड़े में...-
मेरा तो जुर्म है पोशाक पर, उसकी ख़ता क्या थी?
ग़रज़ मिलता सितर, औरत ने वो चादर नहीं पायी।-
कमजोरियों से भरे जवाब और कोई निशानी नहीं चाहिए,
औरत के नाम मुझे एक ऐसी बेहतरीन कहानी चाहिए।
खामोशी कब्र की और कोई रूहानी बात नहीं चाहिए,
औरतें क्यूं हो मजबूर उन्हें खुदा जितनी बराबरी देनी चाहिए।
ख़्वाब खुद के गुमराह और बातें दबानी नहीं चाहिए,
क्योंकि मेरी मां कहती है कोई बात छुपानी नहीं चाहिए।
अब हौसला बुलंद और अंदाज कुछ ऐसा चाहिए,
औरत की बराबरी हर आदमियों को करनी चाहिए।
बेबुनियाद इल्जाम ये खुद धुल जाएंगे भरोसा होना चाहिए,
बातें ये कुछ काम की सिर्फ करके ही दिखाना चाहिए।-
Ye Sach Hai Ke
Har Kamiyaab Aadmi Ke Piche
Ek Aurat Ka Haath Hota Hai...
Par...
Ye Jaroori Nahi Ki Support Hi Rahe
Kabhi Kabhi Rejection Bhi Kafi Hota Hai....-
धुंध मे सनी आँखों से
कइयों के चेहरे रौशन होते है
ऐसे हि नही औरत
जननी का रूप होती है
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अगर मिल जाए हुकूमत मुझे काएनात की,
मैं ज़ात-ए-औरत पे दोज़ख़ हराम कर दूं !!
اگر مل جائے حکومت مجھے کائنات کی..
میں ذات عورت پے دوزخ حرام کر دوں !!-
मै औरत हूँ नारी हूँ
वैश्या भी हूँ कुवारी भी....
मै दुल्हन हूँ विधवा हूँ
लक्ष्मी भी हूँ अपशकुनी भी....
मै पैर की जूती हूँ देवी हूँ
कमज़ोर भी हूँ शक्तिशाली भी....
मै सरस हूँ विद्या हूँ
अनपढ़ भी हूँ गवार भी....
मै जननी हूँ माता हूँ
माँ भी हूँ केवल बच्चे पैदा करने वाली भी....
मै जिस्म हूँ बाज़ारू हूँ
सती भी हूँ दुर्गा भी....
मै औरत हूँ नारी हूँ
वैश्या भी हूँ कुवारी भी....-