Nikhil   (Hiraeth)
5.9k Followers · 526 Following

Rajasthan niwasi
Wish me 8 jan
Too young to be called SIR
JUST 25 YEARS OLD
Joined 3 January 2017


Rajasthan niwasi
Wish me 8 jan
Too young to be called SIR
JUST 25 YEARS OLD
Joined 3 January 2017
5 MAY 2023 AT 6:47

मुझसे मिलने आये,तो इतना श्रृंगार ना रख।
इक बिंदी ,दो चूड़ी ,इक नथ बस पा के रख।
आज मिली तो कल बिछड़ने का भी दस्तूर होगा,
ये लाली,काजल,पायल,सनम के लिए संभाल के रख।

-


24 NOV 2021 AT 23:19

लबों से लबों की छुअन को क्या नाम दे,

इश्क़, वासना, ज़रुरत, खवाइश इसे क्या अंजाम दे।

-


19 NOV 2021 AT 0:06

तेरा ,

मेरा न हो पाना ,

ख़ुदा का इस जहाँन में होने का प्रतीक है ।

-


11 NOV 2021 AT 20:02

सर्दी में धूप, गर्मी में छाँव, बारिश में छाता बन जाना,


खूबसूरत लगता यार का मौसम की तरह बदल जाना।

-


11 NOV 2021 AT 12:49

दुआं है या बदुआं जान ,ये तू ही जाने जान।
बस जो गुज़रे मुझपे कभी, वहीं बीतें तभी तुझपे जान।

मैं क्यूँ कहूँ की रहूँगा,फिरूँगा उदास बेबस ही सदा।
गर मैं ज़रा हँसलूं कहीँ, तुझे भी गोदभराई मुबारक जान।

बात गर एक तरफ़ा हो, तो तेरा रुकना नाजायज़ जान।
जब ये उन्स बराबरी की , तो तेरा जाना क्या है जान।

ना ओढ़हु चोला दिखावे का, की खुश रखे रब तुझे।
गर मै रोऊं सिसकूँ कभी, हो घर तेरे भी मातम जान।

दुआं है या बदुआं जान ,ये तू ही जाने जान।
बस जो गुज़रे मुझपे कभी ,वही बीते तभी तुझपे जान।

-


18 OCT 2021 AT 21:28

हां सच ही तो है कि खाना माँ जैसा कहाँ बना पाते है हम ,

झाड़ू लगाते है तो आधा कचरा कमरे में ही पड़ा
रह जाता है,

और

पोछा भी बिल्कुल गीला ही लगा देते है।


पर कभी कभी कुछ अधपका खाना या गीला पोछा भी उसके एक आध काम कर देता हैं।

तो इस दीपावली थोड़ा हाथ बटा दीजिये।।।

घर के बेटों से गुज़ारिश।

-


9 AUG 2019 AT 10:39

हवस के दरिंदो से बचती, होंठ पर ज़हर लगा कर घूमती रही,
एक शख्स बड़ा पाकीज़ा , माथा चुम साथ ले चला।

-


20 MAY 2019 AT 21:52

वो आना शाम को
रुकना रात तक
ज़माने से ताना खाते हुए
तूने ज़िंदगी जी।

ना सुनी किसी की
की मन की
हर शिकारी से बचते हुए
तूने ज़िन्दगी जी

ना मंदिर की सीढ़ियां
ना कचरा पात्र
अपनी गोद को भारी किये
तूने ज़िन्दगी जी।


-


16 MAY 2019 AT 15:42

एक रोज़ शहर जलने दिया मैंने ,वहाँ मेरा घर जो नही था।
फिर घर जला दिया मैंने, क्योंकि यहाँ शहर जो नही था।

-


2 AUG 2018 AT 12:59

यूं तो समंदर भी ख़ुशनुमा था, लेकिन साहिल में बात कुछ और ही रवाँ थी
आखिर कश्ती कहती कैसे वो तोह खुद बेज़ुबान थी।

थी तो मोहब्बत किनारे से,लेकिन ज़िन्दगी लहरो में समा थी
आखिर कश्ती कहती कैसे वो तो खुद बेज़ुबान थी।

-


Fetching Nikhil Quotes