फूल तो फूल हैं काम में खार नहीं आते हैं
मुझको समझ में समझदार नहीं आते हैं
साफ दिल , साफ जुबां से मिलते रहिए
जाने वाले लौट कर हर बार नहीं आते हैं-
Read and Forget
IG - @harfedil_
किसी के ख़्वाब में आने से अच्छा कुछ नही होता
वो मंजर खुशनुमा लगता है सच्चा कुछ नहीं होता
तजुर्बे जिंदगी से कह रहा है बात ये सारँग
किसी के साथ हर इक वक्त अच्छा कुछ नहीं होता-
बढ़ाया जब भी किसी ने तो ग़म बढ़ाया है
किसी ने कब कोई दस्त-ए-करम बढ़ाया है
चराग़ बन के लड़ा हूँ मैं जब अंधेरों से
क़दम क़दम पे हवाओं ने दम बढ़ाया है
मोहम्मद अली साहिल-
भटकते फिर रहें हैं मन के साधू राह दिखला दें
है इतना प्रेम मुझमें की तिरा ये क्रोध पिघला दें
अगर लौटा दुबारा उस खुदा की बारगाह में मैं
कहूँगा छोड़ दें सब कुछ मुझे अय्यारी सिखला दें
अगर अच्छाईयों से आपका मतलब न निकला हो
करें अहसान मेरी कुछ बुराईयाँ भी बतला दें
न रक्खो कोई रिश्ता दोस्ती यारी भी मत रक्खो
जुबां ऐसी न बोलो की मेरे दिल को ये दहला दें
न उतरे बोझ जिम्मेदारियों का ठीक है लेकिन
कमसकम दिल से थोड़ा तो दुखों का बोझ हलका दें-
मो मन मेरी बुद्धि लै, करि हर कौं अनुकूल।
लै त्रिलोक की साहिबी, दै धतूर कौ फूल॥
भावार्थ- हे मेरे मन, मेरी बुद्धि को लेकर भगवान् शंकर के अनुकूल बना दे, अर्थात् मुझे भगवान् शंकर का भक्त बना दे, क्योंकि उन पर भक्त केवल धतूरे के पुष्प चढाकर ही तीनों लोकों का आधिपत्य प्राप्त कर लेता है। भाव यह कि भगवान् शंकर आशुतोष हैं, वे तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं। अत: उन्हीं की भक्ति करनी चाहिए।
रचनाकार - मतिराम-
मिरी चुप्पी के सौ मतलब निकलते हैं
मगर ये दुख जुबां से कब निकलते हैं
जमाना इस कदर गंदा चला आया
सगे रिश्तों में दुश्मन अब निकलते हैं-
कहीं गिरगिट कहीं बिच्छू कहीं पे सांप बैठे हैं
इन्हीं के दरमियां बेखौफ़ हम औ' आप बैठे हैं-
नयन अश्रुपूरित रहेंगे कहाँ तक
बुरा इस जहाँ को कहेंगे कहाँ तक
महादेव विष पान होता नही अब
बताओ दुखों को सहेंगे कहाँ तक-
मैं न मिल पाऊँ तो क्षमा करना
और भी लड़कियाँ क़तार में हैं
वैसे आँसू हैं मेरी पलकों पर
जैसे मोती तुम्हारे हार में हैं
Tanveer Ghazi-
सफर मंजिल कभी रस्ता बताता है
समय हमको न जाने क्या बताता है
नही कीमत यहाँ जिसकी कोई मखसूस
हमें वो आदमी सस्ता बताता है-