तेरी चाहत ही काफी है मेरे लिए..
तुझे पाने की मेरी कोई ज़िद नहीं_-
यहाँ सभी को है कुछ न कुछ पाने की ज़िद
कोई किये बैठा है किसी को भुलाने की ज़िद
कोई शख़्स हरहाल ख़ुश है लोगो की ख़ुशी में
किसी को रश्क़ और है दिल दुःखाने की ज़िद
ज़ुबाँ ख़ामोश लब ख़ुश्क रख तो लें लेकिन
पेट नही मानता करता है बस खाने की ज़िद
ख़ुशी आती जाती है किसी मेहमाँ की तरह
ये ग़म हैं जो करते आकर न जाने की ज़िद
लोग वो फ़रीद हैं जो सबको साथ लेके चलें
वद हैं वो जो करते दूसरों को झुकाने की ज़िद
मजबूरियां हैं 'साजिद' जो आँसू छुपा देती हैं
यादें सितमगर हैं करती बस रुलाने की ज़िद-
Jis mahobbat mein kisi ko paane ki zid ho.... Tho
Vo... Mahobbat nahi...
Kyu ki mahobbat dil se ki jaati hai...
Aur
Zid marzi se....-
"अहमियत ज़िद की नहीं जज़्बात की है
हर किसी से रूठने की फ़ितरत नहीं मेरी।"-
वो बदलना चाहते हैं मुझे तोड़ कर मेरी अना !
कह दो उसे ,, उस पर नहीं मेरी अना पर मैं फ़ना !!-
हम अपनी ज़िद पर आएँ तो जीना भी छोड़ दें.....
'मेरी जान' तुम वहम में हो कि तेरी यादें नहीं छोड़ सकते!-
चाहत ही हैं जो हद से बाहर जाती हैं,
मज़िल हो कितनी भी दूर ये
बात हौसले वालों की समझ में कहाँ आती हैं...-
ये जिम्मेदारियाँ सोने नहीं देतीं
हँसने नहीं देती...रोने भी नहीं देतीं...¡
खुशियां आकर भी चली जाती हैं
चाह कर भी किसी का होने नहीं देतीं....¡
सपनों को ज़िद्द...और ज़िद्द् को जुनून बनाकर
अपने हौंसलों को खो ने नहीं देतीं...¡¡¡-
हार के बाद फिर से जीतना चाहतीहूँ
सुनो जिदंगी मैं तुमसे हारना नहीं चाहती हूँ।
गलती के बाद उसे सुधारना चाहती हूँ
सुनो जिदंगी अब मैं दोबारा गलतियों को दोहराना नहीं चाहती हूँ
रोने के बाद फिर से हंसना चाहती हूँ
सुनो जिदंगी पर मैं तुम्हें खुद पर हंसाना नहीं चाहती हूँ।
अपनी गलतियों को नजरअंदाज कर दूसरो पर चिल्लाना नहीं चाहती हूँ
सुनो जिदंगी खुद को और दूसरों को अब समझना चाहती हूँ।
सुनो जिदंगी तुम्हे बहुत कुछ सुनाना,
और अपने आप को थोड़ा सा सुधारना चाहती हूँ,
सुनो जिदंगी अब मैं बहुत कुछ करना चाहती हूँ।
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