मेघ-मल्हार मेरे मन अम्बर पर उमड़ आते है
बेबात बेबाक़ नयन मेघ बन बरस जाते है
होले से चलती है झाँकियाँ तेरी याद की
दिल सिसकियाँ ले धीरे से सुलग जाता है
तन्हा-तन्हा सा हर लम्हा छलता है मुझको
मैं हर कदम लेती हूँ दूर ये तेरे क़रीब ले आता है
बार-बार बनाती हूँ महल सपनों के तेरे संग
उम्मीदें टूटती है ये भरभरा कर गिर जाता है
मेघ-मल्हार मेरे मन अम्बर पर उमड़ आते है
बेबात बेकाक नयन मेघ बन बरस जाते है-
🎂....माघ मास की पूर्णिमा 🙃🙂😜
पिंजरे मे है दिल दूर है जान
दिल धड़कता भी है इक दूजे के लिए
इक दूजे से अनजान ❤️
सिहर रही है चाहते सिकुड़ रहे अरमान
कैसे दूरी जी रहे जब इक दूजे की जान-
जी करता है मेरा तुझे नोंच लूँ ए-दिल मेरे
इतना दर्द तो वो नहीं देता जीतना तू देता है ।-
मौन
बड़ा ख़ूबसूरत सा मौन बिखरा पड़ा है
कि नहीं सामने और सामने तू खड़ा है
कड़कती है बिजलियाँ खनकती ज्यों हँसी तेरी
जा कर भी नहीं जाता कैसी जिद्द पर अड़ा है
हवाओं सैंग लहरा रहे है पत्ते बारिश की बूँदो संग बहा है
रिस रहा है यादों के झरने सा कैसा फ़ितूर तेरा चढ़ा है
ना तू है है सिर्फ़ तेरा ख़याल यहाँ साथ मेरे
कितना है असर तेरा कि तू ना होकर भी सर मेरे चढ़ा है ।-
मेरी कल्पनाओं के एक अलौकिक जहां में
तेरी पदचाप पर पैर रख मैं मिलूँगी तुझसे ।
कदमताल से कदमताल मिलेगी नयन संग नयन
सपनों की एक ऊँची उड़ान मे ,मैं मिलूँगी तुझसे ।
सुकूँ को भी सुकूँ आए,रूह जहाँ चैन पाए
रचूँगी एक ऐसा जहां,मैं सजूँगी तुझसे ।
रख लूँगी दबा कर छिपा कर हृदय मे तुझको
पूर्णता जहाँ संपूर्णता बन जाए मैं मिलूँगी तुझसे ।
मन में जहाँ न कोई विचार आए ना कोई
सही ग़लत कर फ़रमान गाए मैं रजूँगी तुझसे ।
मेरी कल्पनाओं के एक अलौकिक जहां में
तेरी पदचाप पर पैर रख मैं मिलूँगी तुझसे ।
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मुझे मेरे शिव के सिवाय कुछ
चाहिए ही नहीं
जिसके पिता महाकाल हो
उसकी कोई बराबरी ही नहीं
तवमेव माता च पिता तवमेव
तवमेव बंधु च सखा तवमेव
🙏-
ना गुज़र रही है ना ठहर रही है जिंदगी
बस आहिस्ता आहिस्ता सिहर गई है जिंदगी!
बेतरतीब दिल मानता ही नहीं मेरी
कुछ रास्ते निहारते निहारते तरस गई है जिंदगी!
ना अलविदा किया ना किया स्वागत जिंदगी मे
उनके लिए कर रही मुझसे हिमाक़त है जिंदगी!
रहने भी दे,जा गुज़र जा जरा जल्द ही तू
गुजरिशें कर रही हूँ फिर भी मेरी सुनती नहीं है जिंदगी!
कहती है ना कह जिंदगी मुझे ये जिंदगी
जो जान कह बेजान कर गया उसी पर है क़ुर्बान नादान ज़िंदगी ।
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रूठा-रूठा हर एक कोना सुना-सुना मन का सार
हर शय हो जाती हरी,,,,जो तुम आ जाते एक बार ।-
आलम ये है कथा की व्यथा का
अलम में छोड़ गए बलम
कलम अब क्या करे क़दम का
कदम्ब से हो गए सनम
क्या करे इस छोटे हृदय का ।-