"अहमियत ज़िद की नहीं जज़्बात की है
हर किसी से रूठने की फ़ितरत नहीं मेरी।"-
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दूसरों के शब्द चुराने ... read more
अदब, ख़याल, मंजिल, ख़्वाब;
सब मुसलसल फरार हो गए,
यूँ तौहीन तो ना करते रिश्ते की
देखो मेरे मसले हजार हो गए!-
ये शहर की ऊँची इमारतों ने
प्रेम की दबाई आवाज है;
मेरे गाँव में तो आज भी पेड़ों के
नीचे इकट्टा होने का रिवाज है।-
वक़्त हो या मौसम
खुदा की बनाई हुई हर चीज बदलती है
फिर तुम्हें भी तो उसी ने बनाया था
ना जाने कैसे यकीन कर बैठे हम-
मसला ये नहीं कि तुम परवाह नहीं करते
मुद्दा ये है कि मुझे उम्मीद ही क्यूँ है?-
मजबूरी, बेबसी, लाचारी सी दिख रही है
कहीं इन अल्फाज़ों में तेरा ज़िक्र तो नहीं?-
"गौर से आइने में देखो खुद को
पिता का अक्स ना दिखे तो कहना।"
पिता : ये शब्द नहीं ज़िन्दगी है, जैसे जीने के लिए खाना, पानी और हवा चाहिए ना वैसे ही पिता की जरूरत है। शायद उम्मीद कह सकते हैं पिता को क्यूँकि हवा के बिना भी कुछ सेकंड जी सकते हो पर उम्मीद के बिना एक पल भी नहीं।
हमारी ज़िन्दगी गुज़र जाती है पर उनके दिल का हाल नहीं पूछ पाते हम उनसे कितना प्यार करते हैं ये नहीं बता पाते हैं, ना जाने कितने लोग हैं जो पछताते हैं कि काश! काश उस दिन ये कह दिया होता कि पापा आपको गले लगाना है आपसे बहुत प्यार है मुझे, आप सब कुछ हो मेरे । काश कह दिया होता। लेकिन अब वक़्त निकल चुका है जिससे कहना था अब वो शख्स नहीं रहा सुनने को और ये एक टीस दिल में हमेशा चुबेगी।
लेकिन जिनके पास ये मौका है तो कह दो ना यार बोल दो ना, पापा ही तो हैं थोड़ा अजीब लगेगा मगर कोशिश तो करो। ये "काश!" को मोहलत मत दो ज़िन्दगी में आने की।-