मेरे मायने में तर्क किसी मुद्दा को शुरू करने से पहले, उससे होने वाले नुकसान और फायदे पर किए जाते हैं.. ना कि बीते हुए पल को वर्णन करता हैं..
और स्वार्थ का दूसरा नाम राजनीति हैं..
मेरा सोच ही मेरा स्वाभिमान है...-
ख़ुद से तर्क ए तआल्लुक़ हुए अरसा हुआ
कुछ यूँ गुल ए इश्क़ है रूह पे बरसा हुआ ।।
तआर्रूफ़ ए वस्ल को हीज़्र मियाँ है तरसा हुआ..,,
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मिला क्या मुझे तर्क ए मुहब्बत के बाद
रुसवाई, जग हंसाई और मिली गीली रात-
चाहे दे सजा तर्क ए गुफ़्तगू मगर
तर्क ए दीदार हमें कबूल नही
सांस चले ना और जिंदा रहे हम
जाने जानां ये मुमकिन नही-
कुछ अल्फाज जैसे ही बस रिश्ते तर्क बनके रह गए हैं
जितना गुजरा कल और आज में उतना ही फर्क बनके रह गए हैं
जो लगते थे रिश्ते बहुत अजीज है मेरे लिए 'अजनबी'
मेरी कॉल हिस्ट्री बता रही हैं महज सम्पर्क बनके रह गए हैं-
मैं करू बयां तुम अर्ज लिखो,
मैं कहूं मोहब्बत तुम दर्द लिखो,
मैं कहूं दवा तुम मर्ज लिखो,
मैं कहूं हक तुम फर्ज लिखो,
मैं कहूं निशुल्क तुम कर्ज लिखो,
मैं रहूं ख़ामोश तुम तर्क लिखो,
मैं कहूं एक समान तुम फर्क लिखो,
मैं कहूं हकीकत तुम ख़्वाब लिखो,
मैं कहूं शरबत तुम शराब लिखो,
मैं कहूं मित्रता तुम बेर लिखो,
मैं कहूं अपना तुम गैर लिखो,
मैं कहूं जल्दी तुम देर लिखो,
मैं कहूं हार तुम जीत लिखो,
मैं जो कहूं तुम उसका विपरीत लिखो,-
एक दायरे में किया गया विरोध
कभी तर्कहीन नही हो सकता..
वहीं, दायरा पार करने पर
विरोधी अपने तर्क नष्ठ कर लेता है..-
लड़का चंचल तो ये उसका स्वभाव है
लड़की चंचल तो ये उसके बुरे चरित्र की पहचान है
वाह री दुनिया तेरे तर्क भी बेमिसाल है...-
तर्क-ए-ताल्लुक की बस इतनी ही कहानी रही
मैं उसके सामने ही थी और ओझल हो गयी-