Neha Gaur  
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Joined 2 March 2019


Joined 2 March 2019
8 HOURS AGO

झूठ अपने सुंदर नाज़ुक पंखों से बहुत ऊँचा उड़ रहा था
लेकिन सच भी इस बार अपने धूल भरे पैरों से अड़ गया

दिन रात के सफ़र में कोई भी इन आँखों का नहीं हुआ
रात का सपना सुबह तो सुबह का सपना रात में इनसे बिछड़ गया

झुकी आँखें नरम लहज़ा रखे खामोश सा वो लड़का
अपनी माँ के लिए इस दुनिया से लड़ गया

प्रेम की नई परिभाषा लिखी जाएगी अब
इस बार एक वैरागी एक जोगन के प्रेम में पड़ गया

तवक्को तो यूँ भी कुछ नहीं थी मुझे उससे
लेकिन उसकी नज़रअंदाज़गी का तीर मेरी अना में गड़ गया

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26 APR AT 16:25

हम हर चीज़ को हल करना चाहते हैं। सरल चीज़ें हम समझ नहीं पाते। सरल चीज़ों में हमें जीत का अनुभव नहीं होता। प्रेम सरल है। वह या तो है या नहीं और इतनी सी बात हम नहीं समझते या फिर समझना नहीं चाहते। उसे उलझाते रहते हैं कि उसे सुलझाएं। लेकिन जो उलझा ही नहीं वो सुलझेगा कैसे। खुद को सुलझाइये प्रेम आपको स्वयं खोज लेगा।

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25 APR AT 13:58

मुझे ज़मीं वालों से कोई शिकायत नहीं
मैं आसमां की उंगली थामे चल रही हूँ

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24 APR AT 14:09

बेवजह नहीं है तुनकमिजाज़ी उसकी
उसने भी कभी किसी से शिद्दत से इश्क़ किया था

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23 APR AT 16:37

मैं उससे हाथ मिलाने तो गयी थी मगर
उसने राह में शतरंज के सारे मोहरे बिछा रखे थे

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22 APR AT 15:27

तुमने फूल तितली धनक की बात करते करते
ज़िंदगी को समझा है
मेरे ज़िंदगी के तज़ुर्बे तुमसे ज़रा अलहदा हैं

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21 APR AT 13:58

सितारे मेरी उंगलियों में क्या उतरे
मेरे हाथों में चाँद मुँह फुला कर बैठ गया

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20 APR AT 13:16

She wanted to fix her broken heart. She cut that hurting part. She's heartless now.

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19 APR AT 16:38

उसने देखी हैं बदलती हुईं सभ्यताएँ बदलते हुए युग
वो साक्षी है जीवन के होने से जीवन के ना होने तक का
वो काल से परे है
लेकिन उसके पास कोई सिद्धि नहीं है ना ही कोई वरदान
वास्तव में सृष्टि के अस्तित्व में आने से कुछ क्षण पूर्व
जब सभी जीव जंतु नींद और जागने के बीच झूल रहे थे
तभी उसने जीवन और मृत्यु के मध्य का संवाद सुन लिया
मृत्यु कह रही थी मैं तुमसे मिलने आऊंगी हर बार हर सजीव प्राणी में
किंतु मेरे आने की तुम स्वयं पहली शर्त हो
पूरा जीवन जीना मेरे पूर्ण रूप से आने का उद्घोष है
बस इसी वजह से वो कभी पूरी तरह नहीं जिया
कुछ ना कुछ अगले जन्म के लिए छोड़ने वाला
हमारा एक हिस्सा जो हमारी ही इच्छाओं से अभिशप्त है
वो कभी मर कर भी नहीं मरता

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18 APR AT 12:08

रात की बात की तो दिन मुझसे रूठ गया
उजाले को अंधेरा अस्पृश्य लगता है

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