दर्द की इंतेहा ही कुछ इतनी थी इस बार
कि मेरी हर हँसी के पीछे से झाँकता रहा है वो-
इतना लिख चुकी हूँ तुम्हें
कि मुझसे कुछ और लिखा नहीं जाता
ज़ख़्म पर ज़ख़्म दे तो रहे हो पर सोच लेना
भर जाता है लेकिन ज़ख़्म का निशान नहीं जाता-
ये चार दीवारें अब अजनबी लगतीं हैं मुझे
मैंने एक शख़्स को घर बनाया था कभी-
प्रेम ने त्यागा
जीवन भर का साथ एक क्षण में छूटा
प्रतीक्षा निष्फल है जानते हुए भी
उन्हीं की प्रतीक्षा की
संसार में रहकर इच्छाओं से विमुख रहीं
यशोधरा को निर्वाण
बुद्ध से पहले प्राप्त हुआ-
मुझे किसी के क़िस्से में अपने क़िरदार की मौत का ग़म नहीं
मैं जानती हूँ मेरी माँ की कहानी में मेरा हिस्सा हमेशा रहेगा-
ज़मीं से जब ज़ख्मों के दरख़्त उगने लगें
तब आसमाँ से ख़ून टपकना लाज़मी है-
एक पल में बेगाने होने वाले ये लोग
कभी सदियों की बातें किया करते थे
तुम्हारे साथ पूरा चाँद देखने को हम
अपने हिस्से जमा काली रातें किया करते थे
ये अकेले रहना समझदारी की बातें तो तुम्हारी सौगात है
वरना हम भी कभी अल्हड़ थे इश्क़ की बातें किया करते थे-
प्रेम में कुछ शेष रह जाए तो अच्छा है
पूरा होने पर तो चाँद भी घटने लगता है-
किसी को किसी और में ढूँढना
कितना मुश्किल है ख़ुद को हर नज़र में ढूँढना
पहले तो तग़ाफ़ुल में खो देना उसे
फिर उसे गुज़रते हर शख़्स में ढूँढना
सिफ़ारिशों से पहुँचे हैं जो मंज़िल तक
उनका फिर मंज़िलों से रास्तों को ढूँढना
भीड़ में नहीं वो ख़ुद में गुमशुदा है
दुनिया में नहीं तुम उसे ख़ुद में ढूँढना
प्रेम ही है अनादि से इस सृष्टि की नींव
फिर भी प्रेम खोकर प्रेम ही को ढूँढना-