पल भर भी नींद मुझको मयस्सर नहीं हुई
सदियों से उसकी याद में सोई नहीं हूँ मैं
चाहा मिले सुकून तो सो जाएं चैन से
किस्मत से मांग कर इसे लाई नहीं हूँ मैं
चलती हूँ बेहिसाब तो पहुंची हूँ इस जगह
निभती चली गई है निभाई नहीं हूँ मैं
दीवार छत मिलाया और बनाया है मकान
सदियों से खाली घर है बसाई नहीं हूँ मैं
जब भी मिले हो मैंने तबस्सुम सजा लिया
आंसू के गीत तुमको सुनाई नहीं हूँ मैं
@सरोज यादव 'सरु'
-
In search of Peace and leave everything behind
It might look selfish and my thoughts can't be defined
But for once in my life I don't want to be blindly kind...
-
उसका क्या मलाल जो मयस्सर ही नही
हासिल है कुछ तो मुख़्तसर ही सही
अन्जान लहरों पर उतरे यकीं के साथ
छोड़ कर चला गया रहबर ही कहीं
जिसके निशां पर ही चलते रहे उम्रभर
उसने देखा कभी ,मुड़कर भी नही
जिस इंतखाब-ए-तरजीह पर बना आशियां
वो दरों दीवार फिर उसकी मुंतज़िर ही रही
वो छत ,गलियां, बूढ़ा बरगद,वो सब्ज़-ज़ार
जाता हूँ अबभी मगर तन्हा,यकसर ही वहीं
उन आँखो लबो की मस्तियाँ और थी,'राज',
साकी तेरी किसी शराब में वो असर ही नही-
मुद्दतों से तू जिसकी मुंतज़र रही....
या खुदाया.!
तुझे उसकी शग़फ़ मयस्सर हो....-
मयस्सर
माकूल जिंदगी की आस में
मयस्सर जिंदगी भी शूल हो गई
मयस्सर जो शहर हुआ हमें
गांव की सीख गुल हो गई
मुर्गे की बांग मयस्सर कहां अब
मयस्सर जो नींद थी वह भी फिजूल हो गई
मयस्सर मृगतृष्णा के माहौल में
गांव की वास्तविकता फेल हो गई-
उस गाँव को
मयस्सर नही
हो रही बरसात
कई बरसो से....
कहते है शहर वाले चुरा
ले जाते है बादल
क्योकि शहर वाले
लाचार हो गए है....
नदियाँ सूख गई हैं
और शहर की
वो बड़ी बड़ी
सब मशीनें
भी हार चुकी हैं....
एक बादल तक
कोई मशीन
बना नही पा रही....-
एक पल भी सुकूँ का मयस्सर नहीं,
ऐ ख़ुदा तू बता क्या है तेरी रज़ा..!
बोझ लगने लगी अब मुझे ज़िंदगी,
हर कदम बेरुख़ी हर घड़ी एक सज़ा!
दर्द हद से गुजरकर दवा ना हुआ,
और कितना सहूँ ये सितम आपका.!
दिल की तन्हाईयाँ इस कदर बढ़ गयी,
लुत्फ़ मिलता नहीं महफ़िलें बेमज़ा..!
पूछता हूँ स्वतंत्र क्या ख़ता है मेरी?
मैंने तो दुश्मनों को भी दी है दुआ..!
चुप हैं क्यों आज तक तू बताता नहीं?
तू बनाकर तमाशा क्यों लेता मज़ा?
सिद्धार्थ मिश्र
-
you come to know that every word I
ever wrote about love, was for you?
Would you become my lover? or
would you conceal your feelings like me?
or would you totally hide yourself from me?
But, whatever it would shape us
into or disfigure us into, I long
to read you write for me someday.
What if you never know...
I would be answerable to none
even not to me if my heart shatters.-
मुख्तसर सी जिंदगी में कुछ भी मयस्सर न हुआ
दर बदर फिरते रहे हम हालात के मारे मारे-