तुम्हारा रूठ जाना भी मुझे लगता तुम्हारा प्यार
तुम्हारे बिन बहारों के जमाने , ले कर आये खार-
तुम तो सिखलाते जतन तुझको नही आया
""अहा !! जिंदगी !!""
उहापोह से भरी है दुनिया सांस सांस मे संशय है
तब भी पास तुम्हारे आकर कहती साथ तुम्हारे हूँ
कितने हैं जो तोड़ गये हैं बन्धन दुनियादारी के
चाहे जो हालात हो जग में रहती साथ तुम्हारे हूँ
माना सब अपने में गुम है नहीं सुने तो गमगीं क्यों
नहीं अकेले जो कहते हो कहती साथ तुम्हारे हूँ
मौसम करवट ले ही लेगा फितरत से क्यों डरते हो
सर्द हवा या गर्म दुपहरी सहती साथ तुम्हारे हूँ
कश्ती से दरिया की यारी लहरों से घबराना क्या
डूबेंगे या साथ तिरेंगे बहती साथ तुम्हारे हूँ
-सरोज यादव-
तेरी हरकत बताती है बहुत ही डर गया है तू
महज सांसो के चलने से कोई जिंदा नहीं होता.
तू अपनी शख्सियत की हर समय तारीफ सुनता है
महज ताली बजाने से कोई उम्दा नहीं होता.
अगर नफरत बड़ा बलवान है ये मानते हो तुम
तो अबतक लड़ रहा इंसानियत जिंदा नहीं होता.
ये जो कीचड़ लगाते हो किसी की शख्सियत पर तुम
महज मिट्टी लगाने से कोई गन्दा नहीं होता.
@सरोज यादव 'सरु'— % &-
वह उस युद्ध का सिपाही था जो कभी हुआ ही नहीं
वह उस आंदोलन का आंदोलनकारी था जिसमें सिर्फ वही था
वह एक ही समय मे सबके हिस्से का पुण्य अपने नाम करना चाहता है
वह एक ही समय मे कई युगों में अपना परचम लहराना चाहता है
विध्वंस के बाद अब वह विहंगम दृष्टि डालकर शायद अट्टहास कर रहा है
नहीं,नहीं, विदूषक आपका नहीं ,शायद अब खुद का उपहास कर रहा है
@सरोज यादव-
जननी जग की पालनकर्ता , है तिरस्कार अबला कहना
मैं लड़की हूँ लड़ सकती हूँ सह सकती अब अंधेर नहीं
जब गलत लगा प्रतिकार किया डटकर मुश्किल को पार किया
यह घनी रात भी गुजरेगी अब सुबह में ज्यादा देर नहीं
मैं हार कभी भी ना मानू , मैं राह दिखाती मुश्किल में
मैं दीपक हूँ , मैं ज्वाला हूँ , सूखे तिनके का ढेर नहीं
मैं लड़की हूँ लड़ सकती हूँ सह सकती अब अंधेर नहीं
मुझे राह बनाना आता है , हो पर्वत या दरिया गहरा
सदियों से जंग की आदत है मैं बस मिट्टी की शेर नहीं
कर्तव्य समर्पित नारी हूँ , विषदंतो की संहारक भी
नापाक भुजा खंडित कर दूं जालिम दुश्मन की खैर नहीं
मैं लड़की हूँ लड़ सकती हूँ सह सकती अब अंधेर नहीं
@सरोज यादव"'सरु'
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सम्मोहन आखिर छंटता है , जैसा भी हो जाल बुना
आज नहीं तो कल आखिर सब , सोते से उठ जाएंगे
वक्त भरेगा घाव ये तय है , पीड़ा की भी सीमा है
लेकिन तबतक जाने कितने जख्मों से टकराएंगे
औरों की सिसकी सुनकर भी नीद जिन्हें आ जाती है
फिर तो तय है कल वो तन्हा , अपना सर टकराएंगे
गिरवी रख दी जिसने गैरत चांदी के दो सिक्कों पर
उजले दामन वालों से फिर , वो कैसे आँख मिलाएंगे
@सरोज यादव 'सरु'-
सभी चेहरे चहक जाएं जमाने भर में खुशियां हो
दुआ से रौशनी आये जहां भर में उजाला हो
जहां सब मिलके रहते हों वहां हो नूर की बारिश
किसी को दे नहीं पाए ,जो नफरत हो दिवाला हो
धरा भर के किसानों का , दमन कोई न कर पाए
किसानों को मिले खुशियां सभी मुंह को निवाला हो
यहां सब प्रेम के आदी ,अहिंसा सत्य की धरती
यहां रह ही नहीं पाता , जो दिल में मैल वाला हो
@सरोज यादव-
जो हमको सोचना मुश्किल वो दुनिया कर गुजरती है
किसी भी बात पर दुनिया की , अब हैरानी नहीं होती-
मुझे मालूम है कहने से मेरे कुछ न बदलेगा
मगर मैं खुद की नजरों की हिकारत सह नहीं सकती
मिली है कैद जो बोलें , भले गूंगो की पूजा हो
करो तुम तय सजा , बोले बिना मैं रह नहीं सकती
हवा के रुख से सच और झूठ तुमको ही मुबारक हो
मरूं मैं लड़ के लहरों से ,मैं मुर्दा बह नहीं सकती
यहां झूमी बहारें और बड़े पतझड़ भी गुजरे हैं
अगर डूबा था दिन तो , रात भी तो रह नहीं सकती
@सरोज यादव-
मेहरबां हुआ जो समय मसखरों पर
सुना !! फिर जुबाँ चल पड़ी बेतहाशा
दुबारा नहीं चढ़ती , लकड़ी की हांडी
सुना उनकी गलियों में फैली निराशा
भरम है , टिके आशियाना हवा में
उखड़ जाते है पाँव उछलो जरा सा
मुखौटों से कब तक बढ़ाओगे रौनक
झलक जाए चेहरे से आखिर हताशा
शहर बन के उजड़ा, उजड़ कर बसा है
किसी ने मिटाया , किसी ने तराशा
@सरोज यादव-