वो मेरा दोस्त ही, मेरी दुनियाँ है, मुझसे जुदा कब है, बात नहीं होती,दरम्याँ हमारे, मुझसे खफ़ा कब है.
-डॉ मंजू जुनेजा (4/8/2025)-
वो कहता था तुम्हारा रोता हुआ चेहरा भी म... read more
दोस्त होते हैं, तो जिंदगी, बड़ी हसीन होती है,
बिना दोस्तों के, जिंदगी, बड़ी ग़मगीन होती है.-
मेरा प्यारा सा दोस्त, मेरी दुनियाँ हुआ करता था,
मेरे बिन कहे वो, सब कुछ कर दिया करता था.
प्यार और विश्वास की, डोर पर ही बंधा था रिश्ता,
वो मेरे दिल का टुकड़ा, मेरी जान हुआ करता था.
बिन कहे समझ लेता था, वो मेरे दिल की हर बात,
इकपल भी मेरी आँखों से, दूर कहाँ हुआ करता था.
बस उसे पता चल जाती थी, मेरी भीतर की उदासी,
लगा लेता था कंधे से यूँ, मुझे रोने दिया करता था.
आता था जब भी, दोस्ती का ये खूबसूरत सा दिन,
मेरे लिए पत्र में, कुछ ना कुछ जरूर लिखता था.
देता था लिखकर, लिफ़ाफ़े में अनमोल सा तोहफ़ा,
पढ़कर लिखा खत, मेरा दिल खुश हुआ करता था.
दर्द से आँखे भर आयी मेरी, देखकर खत उसके,
आज भी रूह है मेरी, तब भी रूह हुआ करता था.
डॉ मंजू जुनेजा ( 3/8/2025)-
Friend forever
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कुछ तो है दरम्यान ,रूह का ,अनजाना सा रिश्ता,
ना चाहते हुए , तेरी और खिचा मैं, चला आता हूँ.
पूछता हूँ ख़ुद से, दिल पे अपने, हाथ रखकर रोज,
क्या रिश्ता है तुमसे मेरा, कभी समझ नहीं पाता हूँ.
हर-पल,ख्यालों में रहती हो,मेरे तुम साये की तरह,
तुम्हें सोचते- सोचते,तन्हा, कहीं दूर निकल जाता हूँ.
वापिस लौट कर,घर आने को,जी नहीं चाहता मेरा,
घर की चारदीवारी में भी,तेरी यादों में, बह जाता हूँ.
सुकून, खो बैठता हूँ अपने दिल का, यूँ बंद कमरे में,
तुम्हें अपने पास ना पाकर, इस क़दर बिखर जाता हूँ .
इक अनजानी सी, डोर से बंधा है, ये दिल का रिश्ता,
तुम मेरी क्या लगती हो, ख़ुद से ही जानना चाहता हूँ.
डॉ मंजू जुनेजा (2/8/2025)
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इस क़दर, तुम्हारी सादगी, मुझे लुभाती है,
मेरे दिल के, ये सोये हुए, अरमाँ जगाती है.
चाँद से मुखड़े पर, बिखरी- बिखरी जुल्फे,
सच पूछो तो, मेरे दिल का, चैन चुराती है.
जब खनकते हैं, तेरी पायल और कंगन,
मेरी रूह का, सुकून ही, छीन ले जाती है.
ऐसे ही, बरक़रार रखना, इस सादगी को,
सामने देख मुझे, जब तू, हया से शर्माती है.
आती हो चुपके से, जब भी मेरे ख्यालों में,
जीती जागती हुई, एक ग़ज़ल बन जाती है.
लिखने बैठता हूँ ,जब तुम्हें ,कोरे कागज़ पे,
क़रीब आके मेरे ,तू ,होले से मुस्कराती है.
भूल जाता हूँ लिखना, तुम्हें करीब पाकर,
तुम्हारी दिलकश अदाएं, अपना बनाती है.
-डॉ मंजू जुनेजा (1/8/2025)
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रूठी हूँ मैं तुमसे, इक बार, मुझे मना लो,
दे के, तुम बाहों का साहारा, गले लगा लो.
फ़िर ना कहना की, मैंने, हक़ जताया नहीं,
दे के बे-पनाह मोहब्बत, बाहों में सुला लो.
है, आसमाँ पे निकला, चाँद, फ़िर मद्धम सा,
छेड़ो, दिल का साज कोई, गीत गुनगुना लो.
हुई गुस्ताख़ी तुमसे, मैंने तुम्हें माफ़ किया,
दिल में तुम, प्यार का, फ़िर से दीप जला लो.
मना लो फ़िर से, चूम कर, झुकी पलके मेरी ,
क़ैद करके, मुझे यूँ, अपनी बाहों में समा लो.
नज़र ना लग जाये, ज़माने की मोहब्बत को,
करीब आके, ज़माने की, नजरों से छुपा लो.
-डॉ मंजू जुनेजा (31/7/2025)
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जीना मेरी बेबसी है, मैं मर भी नहीं सकता ,
जीते जी आँख अपनी, बंद कर नहीं सकता.
कैसे छोड़ दूँ रोते-बिलखते हुए परिवार को,
हाथ कटे हैं ,इनके लिए कुछ कर नहीं सकता.
इस क़दर कर दिया ,कुदरत ने मोहताज़ मुझे,
अपने मासूम बच्चों का, पेट भर नहीं सकता.
इनकी माँ जिंदा होती ,तो इन्हें पाल भी लेती,
इन्हें भूखे मरते, अपने सामने देख नहीं सकता.
ऐ खुदाया, ये कैसी तूने, अपनी लीला है रची ,
सर तो झुका दिया ,पर हाथ जोड़ नहीं सकता.
कर कोई करिश्मा ,ख़ुदा बच्चे भूखे ना सोए ,
तेरे बिन कोई भी, चमत्कार कर नहीं सकता.
किए होंगे इस जन्म में कोई बुरे काम मैंने ,
है मेरे कर्मों में कमी, तुझसे लड़ नहीं सकता.
-डॉ मंजू जुनेजा (25/7/2025)
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सावन की पहली बारिश ने,तुम्हें भिगोया तो होगा,
आंसुओ से अपने चेहरे को, तुमने धोया तो होगा.
याद किया होगा तुमने, बारिश में यूँ भीगते वक़्त ,
मुझे याद कर तुमने,सावन का गीत गाया तो होगा .
तुम थी, मैं था,बरसात थी,और तीज का झुला था,
झुला होगा, झूला ,दुपट्टा हवा में लहराया तो होगा.
पींगे डाली होंगी तुमने, सखियों के साथ मिलकर,
मेरी भेजी हुई,हरी चूडियों ने,मन लुभाया तो होगा.
पहनी होंगी तुमने, फ़िर से पायल, साँझ ढलते ही,
पास ना पाके, तस्वीर को गले से, लगाया तो होगा.
भीग गयी होंगी, पलकें तुम्हारी मुझे याद करके,
बिताया था, जो वक़्त साथ, याद आया तो होगा.
उठाया था चेहरे से घूंघट, चूमे थे नाज़ुक लब तेरे,
याद कर वो रात ,चेहरा हया से झुकाया तो होगा.
-डॉ मंजू जुनेजा(22/7/2025)
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बस तुझे देखा ,तेरे दीवाने से हो गए ,
भूल गए ख़ुद को ,परवाने से हो गए.
जलते रहे, दिल ही में तुझे याद कर,
गुजरा वक़्त , हँसे ज़माने से हो गए.
कभी रिसते रहते थे, दर्द बन के घाव,
दिल के ये ज़ख्म, सयाने से हो गए.
दिल में दबाते रहे, इसक़दर दर्द अपना,
आते नहीं नज़र, ज़ख्म पुराने से हो गए.
देखा करते थे ,आईने में सुरत अपनी ,
आईना देखे मुझे, कई ज़माने से हो गए.
तुझे याद करके, गुजरता गया ये वक़्त ,
ठहरी जिंदगी ,भुलाने के बहाने से हो गए.
बढ़ता गया यूँ दर्द, दिल ही दिल में मेरे,
आँखों तले घेरे, राज छिपाने से हो गए.
-डॉ मंजू जुनेजा (21/7/2025)
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