क्यूँ बे वज़ह, अपनों को ही, क़ातिल ठहराया जाए,
क्यूँ ना, अपने ही कर्मों का, यूँ हिसाब लगाया जाए.
मेरे क़ातिल, मेरे अपने ही हो, यह ज़रूरी तो नहीं ,
क्यूँ अपनों के सर,बग़ैर सोचे,इल्ज़ाम लगाया जाए.
ठोकरें खाना लिखा है, दुनियाँ में , तक़दीर में अगर ,
क्यूँ ना,अपनी क़िस्मत को, हर बार आजमाया जाए.
मेरे अपने,मेरा कभी,जिंदगी में बुरा सोच नहीं सकते,
क्यूँ ना, फ़क्र और शान से, सर को ऊंचा उठाया जाए.
लिखी हैं उम्र भर, मुक़द्दर मे मेरे, अगर ये रुसवाईयाँ,
क्यूँ बे-बात पर, किसी को, क़ुसूर वार ठहराया जाए.
मोहब्बत, वफ़ा, सब मिलता है, दुनियाँ में किस्मत से,
क्यूँ तुझे,मुझपे एतबार नहीं,कैसे यक़ीन दिलाया जाए.
कर दी जिंदगी में,अपनों पे, जिंद-ओ-जान न्यौछावर,
क्यूँ अपनों को भी,दिल चीर कर,अपना दिखाया जाए.
-डॉ मंजू जुनेजा (19/6/2025)
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वो कहता था तुम्हारा रोता हुआ चेहरा भी म... read more
दर्द ए दिल अपना, लेके कहाँ जाया जाए,
भरी महफ़िल में, फ़िर से मुस्कुराया जाए .
मिलती नहीं जिंदगी, दुनियाँ में बार बार ,
क्यूँ ना हँसकर ,जिंदगी को बिताया जाए.
वैसे तो हर शख्स के, अंदर है वीरानियां,
उनके साथ बैठ कर, वक़्त गुजारा जाए.
बड़े करीब से देखा, दर्द में डूबे चेहरों को,
क्यूँ ना रोते हुए, चेहरों को हँसाया जाए.
उठ गया है यक़ीन, जिनका इस दुनियाँ से ,
देकर यूँ प्यार दिल से, यकीं लौटाया जाए.
डाल दें अपनी, बाहों का हार उनके गले में,
रूठे हैं जो मुझसे ,उनको फ़िर मनाया जाए.
रब से उनके लिए, मांग कर जिंदगी की दुआ,
दुआ में उनके लिए ,फ़िर हाथ उठाया जाए .
डॉ मंजू जुनेजा (12/6/2025)-
रब से है दुआ, ना जहां में कोई भूखा सोये,
हर इंसान के पास, सर छुपाने को छत होय.
बरसती रहे जहाँ में ,सब पर, रब की इनायत,
तन ढंकने के लिए, सब के पास कपड़ा होय.
बनाया है, हम सब जीवों को ,उस परमात्मा ने,
अनजाने में भी, ना कोई हमसे, ग़लती होय .
चले नेकी की राह पर, जिंदगी में सद कर्म करे ,
मांगते हैं दुआ रब से, ना किसी के साथ बुरा होय.
खुशहाल रहे सबका जीवन, यही दुआ मेरी रब से ,
खुले रहे तेरी रहमत के द्वार, सब पे तेरी कृपा होय.
बिन मांगे ही देता है ख़ुदा, और उससे क्या चाहूँ,
सर पर रहे मेहर का हाथ सदा, मेरे अंग संग होय.
डॉ मंजू जुनेजा-(11/6/2025)-
अमानत में कभी, ख़यानत नहीं करते,
दोस्ती को भी, कभी लानत नहीं करते.
सुपुर्द कर दी, अमानत उसके हवाले,
पराई अमानत पर, निगाह नहीं धरते.
रखी जी जान से भी, उसकी अमानत,
पाक दोस्ती में, रिश्ते ग़लत नहीं करते.
हिफाज़त की उसकी, बहन की तरह,
दोस्ती के दरमियाँ, यूँ दगा नहीं करते.
निसार कर दी, अपनी जान उस पर ,
दोस्तो को कभी भी, ठगा नहीं करते.
रखना पड़ता है, सम्भाल कर रिश्तों को,
रिश्तों में कभी भी, मिलावट नहीं करते.
दोस्ती से बड़ा, कोई रिश्ता नहीं जहां में,
सच दुनियाँ से कभी, छुपाया नहीं करते.
-डॉ मंजू जुनेजा (10/6/2024)-
देखता था जब कोई, माँ की उँगली, पकड़ कर चलता था,
बचपन गुजरा बिना माँ के, माँ की ममता को, तरसता था .
दूर से देखता रहता था, हर माँ को, बच्चों से प्यार करते ,
थी नहीं माँ मेरी ,ममता की ललक में सब ओर भटकता रहा.
ममता की ललक जाने, मुझे शहर से ,कहाँ से कहाँ ले गई ,
उस पूरी रात ,मेरी आँखों से, पानी बन सावन बरसता रहा.
डरा सहमा सा था, अचानक किसी ने, सर पे हाथ धरा मेरे ,
माँ- माँ कहके, मैं उसके आँचल से, बार बार लिपटता रहा.
मुझ अनाथ को, दिया गोदी में बैठा कर, माँ सा दुलार उसने,
रो कर हाल था मेरा बेहाल, गोदी में सर रख, सिसकता रहा.
ममता की ललक, माँ से मिलकर मुकम्मल हुई, उसने बड़ा किया ,
आज वही है माँ पिता मेरा, उसकी ममता का सदा, मुझ पर हाथ रहा .
-डॉ मंजू जुनेजा (10/6/2025)-
कर दी, जिंद और जाँ निसार तुझ पर ,
है अब, ख़ुद से ज्यादा एतबार तुझ पर .
तू हमसाया, जिंदगी का हमराज़ है मेरा,
तू हमदम है मेरा, है मुझे नाज़ तुझ पर.
बन के चला, हमेशा ही साथ ढाल मेरी,
कर दूँ मैं जिंदगी,अपनी क़ुर्बान तुझ पर.
तुझसे मिलकर, ये जिंदगी मुकम्मल हुई ,
लुटा दूँ अपना, बे- पनाह प्यार तुझ पर .
पूजु सदा तुझे, बना के आईना दिल का ,
आता है मुझको ,बार- बार प्यार तुझ पर.
तू इस क़दर, पाक रूह में मेरी समाया है,
मेरी रूह का है, अब अख्तियार तुझ पर .
-डॉ मंजू जुनेजा (9/6/2025)-
मेरी ख़ामोशी की आवाज़, तुम तक पहुंचती तो होगी,
तुम्हारी रूह पर, मेरी ये आवाज़, दस्तक देती तो होगी.
सुना है मैंने ये गहरी ख़ामोशिया, चीर देती हैं रूह को,
मेरी रूह की सदा,तुम्हारी रूह को,सुनाई देती तो होगी.
जलते होगे तुम भी, विरह की आग में मेरी तरह ही,
देखते होगे जब आईना, मेरी परछाईं दिखाई देती तो होगी.
जब भी तन्हा होते हो, मेरी याद में तड़पते होगे तुम भी,
उठती होगी हूक मिलने की आस, उम्मीद देती तो होगी .
जब करते होगे तुम, गहरे समंदर से जाकर बाते दिल की ,
समंदर में उठती लहरे, निगाहों को दिखाई देती तो होगी.
रूह की उठती लहरे भी, ख़ामोशी से सुनाती हैं दासता,
संगीत बन रूह का तुम्हारे, कानो को सुनाई देती तो होगी .
-डॉ मंजू जुनेजा (8/6/2025)
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तेरी ख़ुशी की ख़ातिर जीते हैं,
तेरी ख़ुशी की ख़ातिर मरते हैं.
कर दिया सब क़ुर्बान तुझ पर ,
बस एक तेरे लिए दम भरते हैं.
तुझे देख सामने होती है ख़ुशी ,
एक तेरे लिए ही रोज़ संवरते हैं.
तुम दिन को अगर रात कह दो,
आँख मूँद यकीं तुझपे करते हैं.
कर दी न्यौछावर ये रूह अपनी,
जान हथेली पर लिए फिरते हैं .
इतना सा ग़म ना आए जीस्त में ,
तेरी ख़ातिर रब से दुआ करते हैं.
बदले में कभी चाहा नहीं तुझसे ,
ख़ामोशी ओढ़े तेरे संग चलते हैं.
आए कज़ा जब आए तुझसे पहले ,
ख़ुद के लिए मौत की दुआ करते हैं .
महबूब की खुशी सर आँखों पर ,
उसकी ख़ातिर सब कर गुज़रते हैं .
-डॉ मंजू जुनेजा (8/6/2025)-
कट गई, सारी उम्र मेरी, तेरी बाहों के सहारे ,
देखे साथ मिलकर, हमने जन्नत के नज़ारे.
सुख- दुःख, धूप- छांव, सब सहा मिलकर ,
कभी ना आई, हमारे दरम्याँ, दिल में दरारे .
ग्रहस्थ जीवन में, जितने आए उतार चढाव ,
जिंदगी के, सभी काम, हमने मिलकर संवारे.
जब थक गए, एक दूजे के, कन्धे पे सर रखा,
बने इस जिंदगी में, हरपल,एक-दूजे के सहारे.
कुदरत ने बाँधा, सदा के लिए पवित्र बंधन में,
मिले जब से हम- तुम, आई जीवन में बहारें .
-डॉ मंजू जुनेजा (6/6/2025)-
हर माँ बाप, अपने बच्चों से उम्मीदें बाँधते है ,
बच्चे जीवन में आगे बढ़े, रब से दुआ मांगते हैं.
लगे रहते हैं ,दिन रात, बच्चों की भलाई के लिए ,
जिंदगी में ,कुछ कर गुज़र जाए ,उम्मीदें पालते हैं .
पिता उम्मीदें पालता है ,बेटा कन्धे का सहारा बनेगा ,
बड़ा होकर , ज़िम्मेदारी का बोझ, कुछ हल्का करेगा.
माँ रोती है सोच कर, परदेश में जाने बेटा कैसा होगा,
कब आएगा घर लौट कर, बेटे की राह निहारती है.
ब्याह के बाद बहन, उम्मीद लगाती अपने भाई की ,
रक्षा बंधन के दिन भाई के, आने का इंतजार करती है.
चाहे कोई कितना कह ले, किसी से उम्मीदें मत रखों ,
कहीं न कहीं अपनों से, उम्मीदें हर कोई रखता है .
उम्मीद पर क़ायम हैं, इस भरी दुनियाँ में हर कोई ,
बिना उम्मीद के, जिंदगी में ,रास्ता नहीं निकलता है .
उम्मीद होती है, जिसके सहारे, जीस्त गुज़र जाती है,
इंसान ख़ुद भी तो, इन्हीं उम्मीदों के, सहारे चलता है.
-डॉ मंजू जुनेजा (6/6/2025)-