मोम ने कहा बाती से,
सुनो मैं तुम्हें दिल से प्यार करता हूं।
तुम सदा रोशन रहो,
इसलिए कतरा कतरा जलता हूं।
बोली बाती बड़े प्यार से,
सुन लो मोहब्बत तुमसे,
मैं तेरे अंतस तक जाकर
प्यार से तुम्हें सहलाती हूं,
तेरे संग जीने मरने का,
पल- पल फर्ज निभाती हूं।
कमी नहीं दोनों के प्यार में,
हम संग संग जीते, संग संग मरते,
सच्चा प्यार समर्पित हैं हम,
एक दूजे से प्यार बहुत ही करते।-
गुलदस्ता
मैंने जिसे प्यार से गुलदस्ता भिजवाया
उस बेकदर ने मुझे भाइयों से पिटवाया
अब ये आलम है मुझे रोना आ रहा है
दर्द के मारे पुरा बदन चिल्ला रहा है
हर पल मेरी आँखे डॉक्टर को याद कर रही हैं
और हड्डीयाँ सारी मुझसे फरियाद कर रही हैं
फिर भी मेरा प्यार उसके लिये कम नही होगा
लाख पिटवाए मगर मुझको कोई गम नही होगा
बेशर्म हूँ मैं इतनी जल्दी छोड़ के ना जाऊँगा
ठीक हो के फिर से गुलदस्ता भिजवाऊँगा
😂😂😂😂😂😜😜😜😜😜
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"Sagar-Ocean Of love"
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સંબન્ધ માં અડચણ જો લાખ બને,
પણ મન થયું પાછું આજે ,
'ચાલ ને ફરી આવું એની ગલી મા'
એ દેખાય કે ના દેખાય પણ,
એમનો અહેસાસ તો છે ને
એજ ગલી માં,
મન થયું પાછું આજે ,
'ચાલ ને ફરી આવું એની ગલી મા'-
I don't know what love exactly is..
Because
Whenever I find a mystical depth in people,
I fall for the beauty they hide beneath.
I love,
The way they love themselves.
I love,
the unique sense of thinking they own.
I love,
Their idea of looking only for the beauty
in everything they observe.
I fall for the magic in everyone,
that strikes the strings of my soul,
Guiding the LOVE in me, to love myself
Even more.
But there's only a thing
I'm curious to know .
Are there different kinds of love?-
# इन्सान #
इन्सान का इन्सान से तो है ही नाता
मगर अन्य जीवों का भी है,बड़ा भ्राता
जिओ और जीने दो, विचार अपना कर
प्रकृति का उचित संतुलन,बनाए हमेशा रख-
जिस मासूमियत से ये लहरें आकर पैरों को छूती है,
यकीन नहीं होता इन्होंने कभी कश्तियाँ डबोईं होंगी।
- कुंवर साहब-
- 'મધુર વાણી'
યાદ આવે મથુરાના કૃષ્ણની 'મધુર વાણી',
મિલનની રાહમાં રાધાની આંખો ખોવાણી?
મયૂરપંખ, મિસરી , માખણ અને રાસલીલા,
મોહન વિના કોણ પુરી કરે અધુરી કહાણી?
પુનમની શશિયર પ્રેમી રાતમાં જમના તીરે,
અહો ગિરધર! રાધા વ્હાલી કેમ રિસાણી?
વિરહ અને પ્રેમની છે આ પ્રસિદ્ધ આદર્શ ગાથા,
હૃદયની લાગણીઓની કેવી હેતભરી સરવાણી?
સમસ્ત જગતની શાશ્વત પ્રિત છે 'અવિનાશ',
અનોખા આત્મીય બંધનની રીત કયાં શોધાણી?...
યાદ આવે છે કૃષ્ણની મધુર વાણી.....-
यूं हासिल हुआ है बहुत कुछ मुझे
चंद पलों का सूकूं मयस्सर नहीं
दौड़ती भागती ज़िन्दगी हो गई
खुद से ही हम मिलते अक्सर नहीं
वक़्त के साथ छूट गया सबकुछ
या छोड़ा है मैंने कुछ खबर नहीं
खुद के हाथों ही सब लुटा है मेरा
किसी को दिया है ये अवसर नहीं-
किया इक बार था मैंने दुबारा क्यों नहीं होता
तुम्हारी हक़-बयानी पर भरोसा क्यों नहीं होता
कड़ी मिहनत मैं करता हूँ महीने भर मगर यारो
मेरी तनख्वाह से घर का गुजारा क्यों नहीं होता
बड़े आराम से ग़ैरों का होता आ रहा है जो
है जिसपे हक़ सभी का वो हमारा क्यों नहीं होता
चले दुनिया बदलने पर हमें इक बात बतलाओ
जो पहले चाहते हो घर मेंं वैसा क्यों नहीं होता
नहीं मिलते हैं जुगनू भी अँधेरी रात में "सालिक"
शिकायत क्यों करूँ शब से उजाला क्यों नहीं होता-