Kriti Upadhyay   (कृti)
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Joined 31 May 2018


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21 AUG 2023 AT 1:58

रूठ कर जो जा रहे हो
छूट कर जो जा रहे हो
तुम भले अब दूर जाओ
किंतु जो मेरा था मुझको क्या कभी वापस मिलेगा

आंसू बन कर जो बहे थे
थोड़ी सी वो सिसकियाँ थीं
मेरे हिस्से थे सन्नाटे
थोड़ी सी कुछ हिचकियाँ थीं
तन्हाइयों का वो समाँ अब क्या कभी वापस मिलेगा

तुम भले अब दूर जाओ
किंतु जो मेरा था मुझको क्या कभी वापस मिलेगा

दिख रही हैं हाथों पर जो
लकीरों जैसी कुछ बची हैं
प्रार्थनाएँ कुछ कही सी
अनकही सी कुछ बची हैं
जो बचा था थोड़ा संबल क्या कभी वापस मिलेगा

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15 MAY 2023 AT 10:28

जीवन सफल बनाने वाले मुझको सारे ढंग दिए,
आंखों में जो भरे आज हैं सपने वो सतरंग दिए,
मुझे उड़ान भरने काबिल तुमने ही तो किया है माँ,
भले ना निकली ख़ुद घर से मुझको सारे पंख दिए।

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26 MAR 2023 AT 1:03

कुछ बातें शब्दों में ढलकर कवितायें कह जाती हैं
कुछ बातें अश्रु बनकर आँखों से बह जाती हैं
ख्वाहिश केवल इतनी है मौन रहूँ तो सुन लो तुम
कुछ बातें अधरों पर आते आते ही रह जाती हैं

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19 MAR 2023 AT 1:41

मिला किसी को करवाचौथ, थे सोलह सोमवार किसी के
किसी और के हिस्से आये वचन जो थे स्वीकार किसी के
बहुत थामना पड़ा कलेजा ये जीवन जीने की ख़ातिर
ना बस था किसी के आने पे ना जाने पर अधिकार किसी के

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8 MAR 2023 AT 23:20

बांधना हाथों में और मौली सा कर देना
भाल पर सजती हुई रोली सा कर देना
डालना बस एक मेरे प्रेम का ही रंग पिया
डूबकर मुझमें मुझे होली सा कर देना

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7 MAR 2023 AT 14:20

मन हो गया मलंग फागुन का महीना है
खुमारी ना हो मेरी भंग फागुन का महीना है
चढ़ा दो प्रेम के कुछ रंग थोड़े ढंग भी मुझपे
कि हो लो आज मेरे संग फागुन का महीना है

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4 MAR 2023 AT 21:40

जाने कितने रूप , कितने रंग लिए फिरती हूँ
मैं नारी हूँ जाने क्या क्या संग लिए फिरती हूँ
कितनों की दुनिया मुझमें है, कितनों की दुनिया में मैं हूँ
मैं सारे रिश्ते जीने के ढंग लिए फिरती हूँ

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28 FEB 2023 AT 1:03

दौड़ रहे मन के घोड़ों को रोकना मुश्किल बहुत है
इन चुप्पी साधे अश्रुओं से बोलना मुश्किल बहुत है
जब जब तेरी ओर चाहा इक कदम फिर से बढ़ाना
आया समझ मुझको कि गिरहें खोलना मुश्किल बहुत है

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15 JAN 2023 AT 12:58

मुझसे हो से गये हैं शब्द नाराज़ क्यूँ
मेरे ज़ेहन में आते नहीं हैं आज क्यूँ
पहले अशआर मेरे बात मुझसे करते थे
हो गई बंद उनकी आज आवाज़ क्यूँ

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14 JAN 2023 AT 15:37

प्रेम में काफ़ी नहीं आभार का होना
प्रेम में काफ़ी नहीं इक़रार का होना
प्रेम तो बस चाहता है आत्माओं का मिलन हो
प्रेम में काफ़ी नहीं अधिकार का होना

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