शायद अब वो बदल गयी है,
या शायद उनके लिए मेरी एहमियत...-
तुम्हारा ही ज़िक्र है
तुम मेरे पास हो या ना हो
फर्क नही पड़ता है
मगर तुम्हारी रूह हर वक़्त
मेरे एहसास के साथ रहती है
-
ऐ मेरे दिलबर,,जरा करले तू मेरी फ़िकर
मांगू न कोई महल ,,बस चाहूँ हो तेरे दिल में
मेरी जिकर😍😍😍-
अब जब मैं तुम्हारा जिक्र करने लगूंगा,
तो तुम्हारी फ़िक्र भी करने लगूंगा!
-
तारीफ़ लिखूँ तो आख़िर कैसे लिखूँ 'मैं' उनकी
उनका ज़िक्र आते ही क़लम भी 'शर्माने' लगी है
- साकेत गर्ग 'सागा'-
तेरी फिक्र की आग लगी है जो साँसों में
राख होने से अब डर कैसा...!
ख़यालों में भी मान लेते है तुझे अपना
हक़ीक़तों में कहाँ तेरा ज़िक्र ऐसा....!!-
मेरे अश्आरों में ज़िक्र तेरा, लोग पहचान लेते हैं...
मैं आगाज़-ए-गज़ल करता हूँ, लोग तेरा नाम लेते हैं...
🌹💝-
गलती हुई है तो ऐतबार भी कर,
मुझसे एक बार प्यार भी कर।
सुबह का साज़ भी तो है,
शाम का ज़िक्र बार-बार भी कर।
तुझ से क्या करूँ अब मैं शिकवा,
भूल कर किसी-से आँखें चार भी कर।
दिल-की-बातें-दिल-में ही रहने दे,
बार-बार पूछ कर शर्मसार भी कर।
हैं हमें वस्ल की ख़्वाहिश मगर,
यूँ मुझे भूल जाने की बात भी कर।
-
रूठ जाती है मेरी कलम मुझसे
जिस दिन मेरे अल्फाज़ो में
ज़िक्र तुम्हारा नही होता-
इजहार नही किया....
ज़िक्र मिलेगा उसका हर जगह, तुम्हे मेरी कहानी में
जिससे मैंने प्यार बेशक किया, पर इज़हार नही किया-