भटकती रही कस्ती अपनी गिर्दाब के किनारे
आवाज़ के सहारे पहुँचा तेरे फ़िरदौस-ए-द्वारे।
भरे बज़्म में रक़ाबत के ज़हर से गए हम मारे
बता ए ज़िन्दगी अब जियूँगा मैं किसके सहारे।
क़ल्ब-ए-फ़िगार के दामन से कौन मुझे उबारे
पमाले'आरज़ू अपनी भटकती रही मारे-मारे।-
हाँ मालूम है तेरी तल्ख़ हक़ीक़त का मुझे 'इश्क़'
तू आँखों से क़ल्ब और फिर रूह में उतरता है-
वक़्त जो गुजर गया , वापस लाओगे कैसे
इश्क़ में जो डूबे हो , अकेले निभाओगे कैसे
सीख लो अब अकेले तुम ईद मनाना
वो अब गैर का हो चला , उसे वापस पाओगे कैसे
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हमेशा के लिए गर जा चुके हो छोड़कर हमको
हमारे क़ल्ब में कह दो बनाया क्यों ठिकाना है-
कत़्ल कर क़ल्व की ख्वाहिश को उसने कर दफन डा़ला,,
बडी़ इल्लत है यारो इश़्क में क्या क्या नहीं सहते,,-
वस्ल,हिज़्र,अज़ाब,
ख़ुमार या क़ल्ब - ए - क़ुर्बत
की ज़रूरत थी... ,
अस्ल में मुझ
कातिब को......
एहतमाम की ज़रूरत थी... ,,-
महज़, 'सिगरेट' जलाता है, और 'उसकी' यादों को भुला देता है
'क़ल्ब-ए-आशिक़' 'नसर' 'नादार' लगता है-
हर्ज़ ना होगा हमें भी
सय्याद-ए-महबूब से कत्ल-ए-आम इश्क़ का
गर गम ना मिले तो शक़ है ये क़ल्ब नही-
मुझे उससे मोहब्बत है,उसे ये मैं जताऊँ कैसे,
मैं उसे इजहारे मोहब्बत करने को मनाऊँ कैसे।
प्रयाग-
मुझे छोड़ने का फैसला, ताईद मुबारक़ ।
उसे अपनाने की चाहत, सईद मुबारक़ ।
अरसे बाद दिखी हो, तुम्हें दीद मुबारक़ ।
ईद का चाँद हो तुम, तुम्हें ईद मुबारक ।।-