कोई जाम हूं तो छलक जाऊं ।
तेरे दीद से रूह तलक महक जाऊं ।
कैसे ना देखे तुझे कोई , गुस्ताखी होगी ,
खुदा माफ़ करे गर जो बहक जाऊं ।
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ना जाने मैं कौन हूं , किसके ऐतबार में बैठी हूं ।
ना-उम्मीद दिल लेके भी किसी इंतजार में बैठी हूं ।
ये त्योहारों की भीड़ मुझे उदास कर देती है दिवू ,
खो के सब रंग अपना , सादगी से प्यार में बैठी हूं ।
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कुछ ना हो कर भी कुछ होने का डर ।
लगा रहा हमेशा तुझे खोने का डर ।
संभाल मुझको , अपने सीने से लगा ,
आंखों को हो रहा ख़ुद रोने का डर ।
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वो भी खुश है उसे सोचकर ।
मैं भी खुश हूं उसे सोचकर ।
अपनी में दोनों गुमान पे हैं ,
कौन खुश है किसे सोचकर ।
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गुस्ताख़-ए-दिल मेरी माफ़ करे ।
उसे कहो अपना इरादा साफ़ करे ।
ना मेरी है वो , ना उसकी ही है ,
किसी एक के साथ तो इंसाफ़ करे ।
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नजदीकियों में कुछ रियायतें छीन जाती है ।
रिश्तों के लिए थोड़ी सी दूरी भी लाज़िम है ।
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212 1212 1212 1212 ✍️
दूर रह के जो जी हूं रहा वो फ़िक्र का मज़ा
शोर सब बता रही ये तेरे ज़िक्र का मज़ा
पा लिया ये इश्क़ जिसने इस जमाने में 'दिवू'
वो नहीं समझ सकेगा मेरे हिज्र का मज़ा
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( रकी़ब )
1212 1122 1212 22
उसी के शौक़ का पहने लिबास लगते हो
हसीन हुस्न के बेहद ही पास लगते हो
कहां भटक हो रहे आज मेरे गलियारे
क्या हुआ ये कि मुझ सा उदास लगते हो
तो साथ तेरे मिरे यार ठीक है ना सब
मिरे रकी़ब मे तुम सबसे ख़ास लगते हो
तिरे भी साथ कहीं हादसा हुआ तो ना
सुना था तुम भी मुहब्बत से आस रखते हो
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सोचा है हमेशा तुम्हें तेरे नादानियों के साथ
याराना लगता कुछ इन शैतानियों के साथ
बेहतर मिलेगा हमें , ये बहाना मत सुनाओ
कबूल हो तुम हमें तुम्हारे खामियों के साथ
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यार को मैंने इतना ही बस जाना है ।
साथ ता-'उम्र को उसका ही पाना है ।
इतना मासूम होगा किसे था पता ,
दोस्ती को फ़क़त दोस्ती माना है ।
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