कोई पूछे तो रंजिश कहना,, कोई पूछे तो यारी
कोई पूछे हसरत क्या? कहना सीखी है अय्यारी
कोई पूछे तो बंदिश कहना, कोई पूछे तो हूँ नारी
कोई पूछे हसरत क्या? कहना उड़ना है इस बारी
कोई पूछे तो ख़लिश कहना,कोई पूछे तो आवारी
कोई पूछे हसरत क्या? कहना छोड़ी नहीं खुमारी
कोई पूछे तो तपिश कहना, कोई पूछे तो कटारी
कोई पूछे हसरत क्या? कहना जंग अभी है जारी
कोई पूछे तो कशिश कहना,कोई पूछे तो शिकारी
कोई पूछे हसरत क्या? कहना मर्द पे रही उधारी
कोई पूछे तो कोशिश कहना, कोई पूछे तो हारी
कोई पूछे हसरत क्या? कहना आज़ादी इस बारी-
दहकते अंगारो से प्रीत निभाया करता हूँ,
ख़्वाब जलाकर मैं रोज़ उजाला करता हूँ!
एक झलक की ख़्वाहिश लेकर मुद्दत से,
मैं बादल में रोज चाँद निहारा करता हूँ!
एक लहर आती है बह जाता है सबकुछ,
रेत पर जब जब महल बनाया करता हूँ!
असआर मेरे आबाद हुए, एहसान है तेरा,
मैं ग़ज़लों में तेरा अक्स उतारा करता हूँ!
मेरी बेदाग उल्फ़त पर हँसते हैं लोग यहां,
क्योंकि आसमाँ सी हसरत पाला करता हूँ!
अक्सर सरे आम नंगे हो जाते हैं पाँव मेरे,
जब जब चादर से पांव निकाला करता हूँ!
मत पूछ "राज" से यूँ मोहब्बत की बातें
याद में तेरी मैं ऐसे वक्त गुजारा करता हूँ! _राज सोनी-
हसरत तमाम है मेरे दिल में
तेरा नाम नहीं तो कुछ नहि
थोडा समय बिताया है तेरे साथ
तेरि यादो के सहारे जि लेगे
तुझे ना पसंद है हम खैर छोड जाने दे
इस बात का हमे दुख नहि !!-
सारे जुल्म सहेंगे हम हंसकर तेरी इस मोहब्बत में
यह सोचकर की तू भी कुछ पलों के लिए ही सही मेरा हो जाए.... ❤️-
प्रार्थना क्या हैं?
मेहनत के बाद भी शायद किस्मत में जो नहीं लिखीं हुई हों उन हसरतों को पाने का जरिया है प्रार्थना।-
मुस्कुराऊँ तो.. आँसु चले ज़िन्दगी
कैसे हैं तेरे.. यह सिल-सिले ज़िन्दगी,
जाने क्या है.. के तुझसे जी भरता नहीं
आ लग जा फ़िर से तू.. गले ज़िन्दगी,
कांटे थे.. फूलों की चाह में छंटते रहे
हम तबाह ही सही.. तू खिले ज़िन्दगी,
मुहब्बत में ज़िन्दगी से ही ज़िन्दगी.. है परेशान सी
उम्मीदे-हसरत ही रही.. के मिले ज़िन्दगी..!
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आज दिल से कुछ आग़ाज़ करते हैं,
हर जाम मोहब्बत के नाम करते हैं
मेरी हसरतों का क्या,
वो तो हर रात तेरी महफिल सजाया करते हैं....-
आँखों से पिलाती है वो हर रोज़ मुझे
पर एक हसरत उसके होंठो से पीने की है
यूँ तो सौप रखा है उसने खुद को मेरे हवाले,
मगर दिल की ख्वाहिश पहले उसकी मांग भरने की है-
जाने कब से दफन कर
रखी है अपने ही दिल में
अब ना पूरी करने की चाहत
ना ही पूरी होने की उम्मीद
वो ख्वाहिश तो बस एक
हसरत बन कर रह गई
एक ख्वाहिश आज भी
अधूरी ही रह गई
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कामना,लोभ मिटाकर, खुद को निष्काम किया है
जवान हसरतों को जलाकर, खुद को बच्चा किया है
बढ़ती उम्र के साथ गलतियां बेहिसाब की
अहसास होते ही हर गलती का सुधार किया है
आशिकी का भूत था, न हद थी पागलपन की
आवारगी में ना जाने,दिल किस-किस के नाम किया है
ना तलब खूबसूरती की,ना बहक सकता हूँ अब प्रमत्त नयनो से
इच्छाओं, अभिलाषाओं का गला घोंटकर, खुद को योगी किया है
हुस्न दिखाकर ढूंढ रहे हैं मुझमें वो शख्स पुराना सा,
बेख़बर है कि "मुनीष" ने "मुनीष" को मारकर,"मुनीष" जिंदा किया है-