सती का सतीत्व शिव के सत्य से था,
अब सत्य कहीँ नहीं !!-
मंगलसूत्र में मंगल ना हुआ
जिसे सौंप दिया सम्पूर्ण जीवन
वो मेरा अपना जीवन ना हुआ
नारी हूँ मैं , द्वापर में अक्षय सूत ने बचाया
कलयुग में पर्दों से भी सतीत्व बच ना पाया-
कभी पढ़ा है.....
मेरी चुप्पी के पुस्तकालय
की दहलीज पर शब्दों की
प्रतीक्षा करते हुए मुझे!!
मेरे हृदय के वंशबीज को
जिसकी जड़े फैली हुई थी
शांत धरा रूपी तुम्हारे पास
लहलहाते हुए मुझे!!!!
देखा है कभी मेरे भीतर
चुप सी स्त्री के सत्तीत्व को
एक रोदन रूपी प्यासे के पास
मुस्कुराते हुए मुझे!!
शायद नहीं देखा होगा
तो तुमने देखा ही क्या
रसोई, बिस्तर और खुशी
से बिल्कुल अलग और परे हूं
देखना कभी मुझे!!
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सुंदर, कोमल
गजगामिनी सी मैं,
स्त्री हूँ,
बस यही नहीं
अस्तित्व मेरा
इससे ऊपर कहीं
ऊपर है सतीत्व मेरा!!!-
वो ले रहा था अग्निपरीक्षा मेरे सतीत्व की
जिसकी निगाहें मेरी काया के आर-पार हो रही थीं ..-
हर युग में नारी अपने सतीत्व की परीक्षा देती आई हैं,
सीया भी कहाँ बच पाई थी इस लांछन से कि
लव-कुश...दो पुत्र उसने राम के ही ज़ाए हैं।।-
राजपूत की शान हो तुम परम सती महान हो
सिंहासन पर बैठने वाली तुम खड़क महान हो
लड़े लड़ाईया दुश्मन कापे झांसी की तुम शान हो
धर्म बचाने जलती अग्नि करती तुम स्नान हो
तलवारों की दम पे चलती इतनी तो मजबूत हो
हल्के में नहीं रहती तुम पर्दे सहसम्मान हो
शिश मीठा दे क्षत्रियों के तुम बड़ी महान हो
राजपूत की शान हो तुम परम सती महान हो
लक्ष्मी रूप मे घर निवासी रणचंडी मैदान हो
कभी बरछी डाल बनती,तुम पेनी तलवार हो
पल में दुश्मन मार गिरा दे शक्ति सम्पनवान हो
राजपूत की शान हो तुम परम सती महान हो
जिसको देखो भर नजर से उसपर तुम कुर्बान हो
वरना पीठ नहीं देखती पर्दे अंदर की महारानी हो
ले ढाल तलवार हाथ मे काली का अवतार हो
राजपूत की शान हो तुम परम सती महान हो-