कुछ इस कदर वक्त को हम दगा देते हैं
कुछ लिखते हैं, पढ़ते हैं फिर मिटा देते हैं।-
इठलाती ,बलखाती
झिलमिलाती
सपनों के पुष्पक वन में
रंगीन सब फूलों का रस पाती
जीवन को सजाती
उम्मीदों के सारे रंग छिड़का
नाज़ुक से पंखों को कांटों से बचाती
कोमलता छुआती
मन की वो रंगीन नाज़ुक तितली
जाने कब की मसली जा चुकी।-
खिड़कियों को दरवाज़े से
ज़्यादा सुंदर होना चाहिए...
बंदिशो को एक नया आसमाँ देती
खिड़कियां ही तो खोलती हैं
ख़्वाहिशों के सुंदर दरवाज़े
खामोशियों को सुनती
खिड़कियां सब जानती हैं..
मन के माँझे से बंदी
ख्वाबों की पतंग का आसमान
कहाँ तक है....-
ऊँचे घर के अटारे पर
चाँद से ...न जाने की
ज़िद करके बैठी मैं।
और
मेरी ह्रदय वेदना को शांत करता मेरा चाँद
एकटक देखता है मुझे मेरे ईशारों पर
उस वक्त चाँद बस मेरा होता है।-
नई वाली सैंडल को पहनकर
पुरानी वाली को एकदम किनारा कर देने
पर एहसास हुआ ...
नए में आकर्षण है, खींचता है, लुभाता है।
सुंदर उतरन से ज्यादा नई कतरन
नया घर ,नई गाड़ी, दीवार पर नई तस्वीर
और कुछ नए रिश्ते..माँगते हैं वक्त
जरूरत से ज्यादा देखभाल।
कुछ भी हो नया.. नहीं ले पाता
वही स्थान दिल में....
पाँव के छाले से हुआ एहसास
एक नए दर्द का...
"नया" सबकुछ अच्छा नहीं होता..
लेकिन अच्छा होता है
हर नया एहसास
क्योंकि नए एहसास से बनती है....एक
नई कविता ।💐-
अपने अंदर समेटे रखती हैं
एक पूरा संसार...कितनी कहानियां
कितने किस्से... कितना दर्द किसके हिस्से।
किताबों में दफ़न जाने कितने राज
जाने कब से कैद हैं कितने अनकहे अल्फ़ाज़
तेरी मेरी उसकी इसकी..जाने किस किस की
जीवन यात्रा का बोझ ढोती किताबें
बेचैन पड़ी रहती हैं ... इंतज़ार में
कभी पढ़ ले कोई उनके पन्नों को
चिरकाल की ख़ामोशी को
ताकि उतार सकें किताबें
किसी के अंर्तमन की
व्यथा का..
थोड़ा सा
बोझ !-