दोस्ती नाम है सुख-दुख की कहानी का,
दोस्ती राज है सदा मुस्कुराने का।
ये कोई पल भर की जान-पहचान नहीं,
दोस्ती वादा है उम्रभर साथ निभाने का।
Happy friendship day-
मित्रता दिवस पर एक होहदा हमारे नाम कर दो,
मन की जमीं मे थोड़ा हिस्सा हमारे नाम कर दो,
बना लों हमें भी अपना सूख दुःख का साथी आज,,
और मित्रता दिवस मीत मित्रता हमारे नाम कर दो,,-
*""सरकारी अधिकारी कों निलंबित कर देना"""*
गिरे भवन विद्यालय का तो शिक्षक कों निलंबित कर देना,,
गिरे सरकारी अस्पताल डॉक्टर कों निलंबित कर देना,,
गिरे ईमारत कोर्ट की तो जज साहब कों निलंबित कर देना,,
खुली हुई आँखों से देखो साहब क्या सच्चाई दब पायेगी,,
बोलो साहब इन्हे बनाने वालों पर कभी कोई आंच आएगी,,।।1।।
गिरे ईमारत थाने की पुलिस कों निलंबित कर देना,,
कलेक्ट्रेट ईमारत गिर जाए कलेक्टर साहब निलंबित कर देना,,
गिर जाए अगर ऑफिस सरकारी ऑफिसर कों निलंबित कर देना,,
बोलो साहब इन्हे बनाने वालों पर कभी कोई आंच आएगी,,।।2।।
पुलिया गिर रही पहली बारिश उनका निलंबन कब होगा,,
बिल्डिंग जिसने बनाई उनका निलंबन कब होगा,,
ठेकेदार पर बोलो साहब कब गाज गिरेगी,
या भारत की सड़के पुलिया छते कबतक टूटी चलेगी,,
बोलो साहब इन्हे बनाने वालों पर भी कभी कोई आंच आएगी,,।।3।।
मौरेल नदी मे बस गिरी 32 जान गवाई थी
क्या अबतक कॉलेज की मान्यता निलंबित हो पाई थी,,
चंबल पुलिया टूटी कईयों नें जान गवाई थी क्या ठेकेदार पर आंच आई थी,,
बोलो साहब इन्हे बनाने वालों पर भी कभी कोई आंच आएगी,,।।4।।
वेंग्यात्मक लेख
बहादुर सिंह चाचोरनी-
ये बारिश कुछ तो शर्म कर,,
हालात खराब ना इतना कर,
बोझिल जिंदगी हो जाती थोड़ा लिहाजा कर,,
गरिब घर के नोनिहाल आते सरकारी बिल्डिंग मे,
उनके सारे सपने भवानी दब जाते सपनो मे,,
इन गंभीर हादसों कों रात रात मे होने दें,,
जितना भी तांडव करना हो काली तू रात मे कर,,
ये बारिश कुछ तो शर्म कर,,।।1।।
सड़क टूटती पुलिया टूटे टूटे छते विद्यालयों की,,
कभी न गाड़ी रूकती भ्रष्टाचार के दलालो की,,
हवा सफर मे मरने वाले 1 करोड़ ले लेते है,,
छत के निचे दबने वाले लाखो मे मिल जाते है,,
दया धर्म अब बनी मशीनी लाज बची दिखावे की,,
प्रकृति सुन ले हालत अब तो थोड़ा रहम कर,,
ये बारिश कुछ तो शर्म कर,,।।2।।
चिता जलने कों लकड़ी नहीं चिता शळगी टायर से,,
सूखे सुने सपने नहीं होते तो जलती चिताए चंदन से,,
हालात देख विधाता रोता उसकी ही बनी अब कृति पे,
कुपी होके प्रकृति बरसती हालत देख दलालो की,,
लाज बचा अब बचा संस्कार इतना कर्म तो कर,,
ये बारिश कुछ तो शर्म कर।।3।।-
सावन के झूले छूटे छुठे सहेलियों कों साथ रे,,
शादी हो गई गई ससुराल संग पिया कों हाथ रे,,
संग की सहेलियाँ छूटी छूटे आड़ पास पड़ोस रे,,
नई नई ससुराल बिंदनी रहें नन्द भोजाया साथ रे,,
सावन के झूले छूटे छुठे सहेलियों कों साथ रे,,।।1।।
गाँव की गडार छूटे खेता की पगडंडी रे,,
बचपन की आजादी छूटे आया यौवन देहली रे,,
खेलन कों आंगन छूटे दादा दादी की कहानिया रे,,
गुड्डे गुड्डी की जोड़ी छूटे छूटे बचपन की यादा रे
घर आंगन की तुलसी छूटे छूटे सावन का पचेटा रे,,
सावन के झूले छूटे छूटे सहेलियों रो साथ रे,,।।2।।
नेवज की धार छूटे परवन कों पानी रे,,
बरगद की छाया छूटे छूटे गुड़िया रो खेल रे,,।
सहेलियों रो हेत छूटे बुआ भतीजी प्रीत रे,,
भाभी काकी साथ छुट्ट जा नन्द भौजीया साथ रे,,
ससुराल मे कदम पड़े संग पिया रो साथ रे,,
सावन के झूले छूटे छूटे सहेलियाँ रो साथ रे,,।।3।।-
सुहाने मौसम मे नजर खुशहाल हो गई,,।
ताजी हवा से दिल की जमीं नम हो गई,।।
खुली नजरें तो देखा आपको ए हमसफ़र,।
हमारे दिल मे दिन की शुरु आत हो गई,,।।-
भूल के मैं भूल से एक भूल कर बैठा,,
ना समझने वाले से मैं इश्क कर बैठा,,
बैठा हूँ इंतजार मे मैं इजहार मे उसके,,
वह भी तन्हा होकर अब मुझे भूल बैठा,,-
जातिवाद का जहर फ़िजाओ मे घुल रहा,,
जातिवादी व्यवस्थाओ मे हर कोई चूर हो रहा,,
भूल जाते है राष्ट्रवाद की भावना जाति के आगे,,
जातिये संघठनो के नशे मे मानव चूर हो रहा,,
जातिवाद का जहर फ़िजाओ मे घुल रहा,,
नहीं चाहता है कोई दूसरे कों आगे बढ़ते देखना,,
यहां हर कोई अपनी जाति के लिए जी रहा,,
पीढ़िया कुर्बान कर दी राष्ट्रवाद के नाम पर जिनने,,
ऐसे राष्ट्रवादी आज कहा जन्म ले रहा,,
जातिवाद का जहर फ़िजाओ मे घुल रहा,,-
आओ रे मारा सतगुरु साचा क्यूँ इतनी देर लगाई रे,,
सतयुग त्रेता द्वापर कलयुग चारों युग में चर्चा रे,,
आओ रे मारा सतगुरु सांचा क्यों इतनी देर लगाई रे,,
सत्य धर्म की ज्योति खड़ी- करी सत की ज्योत जलाओ रे,,
राम जन्म मैं तूने जन्म लिया रामकाज कर आयो रे,,
अहि रावण महि रावण मारा लंका जार जलाई रे,
राम नाम का लेकर आसरा जग मे नाम कमाई रे,,
आओ रे मारा सतगुरु सांचा कहिया देर लगाई रे,,
पाप पुण्य मैं जानू कोनी धर्म कर्म मुझे आवे ना,,
सांचो नाम गुरूजी थाको सांचा नाम ही जाना रे,,
आओनी मारा सतगुरु दाता कहिया देर लगाई रे,,
सत की ज्योति खड़ी करि गुरु म्हारा आके ज्योत जलाओ रे,,-
शांति की भाषा समझते नहीं नरभख्सि भेड़िये,
अब इन्हे इन्ही की भाषा मे समझाना होगा,,
बहुत हो गया सभा और बंद प्रदर्शन करना,
भेड़ियों कों उन्ही की भाषा मे समझाना होगा,,
उठा शस्त्र भारत अब हमें लड़ना होगा,,।
तोड़ दे कमर दुश्मन की उसे भी मालूम हो,
मेरे पूर्वजों कों खडेड़ना कितना महंगा पड़ेगा,,
सिर ढकने कों दिया उससी से लड़ना महंगा होगा,,
भेड़ियों कों उन्ही की भाषा मे समझाना होगा,,
याद रखेगी नश्ले आनी वाली उढ़ते चीथड़े,,
फिर से अर्जुन के तीर चलाना पड़ेगा,
काँप उठे आकाश रण भैरी की गूंज से,,
पांच जनन्य शंख नाद फिर करना होगा,,
छोड़ दे नियम, कायदे ताक पर रख दे,,
भेड़ियों कों उन्ही की भाषा मे समझाना होगा,,-