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फ़ैसला
इन सीढ़ियों का फासला
चाहे सिर्फ चार कदम का था
नपा तुला, ना था बेहिसाब,
पर श्रोता से वक्ता बनने में
आत्म विश्वास ने मीलो चले हैं जनाब!
फासले तय करने का फ़ैसला किए हुए
आज अरसा हुआ जनाब
पर आज भी,
यहां आकर,
दिल धड़कता है बेहिसाब
जब तक आपकी आंखो में देख ना लूं
कहा होता है तब तक श्रोताओं को आदाब,
फासला नपा तुला था
ना था बेहिसाब
श्रोता से वक्ता बनने में
आत्म विश्वास ने मीलों चले है जनाब
तालियों से जब तक आलांकृत ना हो
तब तक क्या ही कविता का ज़ैनाब
है वो खैर हर लेखक का खाब
था तो फासला नपा तुला, ना था बेहिसाब,
पर श्रोता से वक्ता बनने में
मीलों चले हैं जनाब!
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हर महफ़िल में सिर्फ़
तीन तरह के लोग होते हैं...
श्रोता...
स्रोता...
और सरोता...-
तूने जुगुनू सा बना दिया, यारा
चमकता तो हूँ, पर उजाला नहीं..
तूने एक ख्वाब सा बना दिया, यारा
दीखता तो हूँ, पर होता नहीं..
तूने एक जंग सा बना दिया, यारा
जीतता तो हूँ , पर हारता कोई नहीं..
तूने एक गीत सा बना दिया, यारा
गाता तो हूँ, पर श्रोता कोई नहीं..
तूने जुगुनू सा बना दिया , यारा..-
व्यंग्य बाण चले कुछ यूँ,
जार-जार करते हृदय को,
वक्ता को बड़ा मिला सुकून,
थाम सका वह हिय-प्रलय को,
श्रोता की गति श्रोता जाने,
शब्द शेष कहाँ अब विनिमय को...-
नाही मी त्या श्रोत्यांमध्ये, आहे तुझ्या श्वासात मी...
नको शोधू तू मला चारचौघात, आहे तुझ्या कवितेत मी...-
जगलेला तो प्रत्येक शब्द, मनात अलवार विरघळला...!!
हलकी नजर तुझ्यावर पडताच, ओठांवर येऊन सजला...!!-
हर किसी को आ गया है बातें बनाना
और मेरी किसी से अब बात नही होती-
हल्ली चार चौघात "कविता"बोलायला मी लाजत असते..!!
तुही श्रोत्यांमध्ये असशील म्हणून "चोरून" पाहत असते..!!-
◆◆ पढ़ने वालों के लिए ◆◆
★ आसान नही होता उनके रूह में उतर जाना ★
★ सुना है उन तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों की ★
★ नही चुनिंदे शब्दों की जरूरत होती है .....!! ★-