PART 1
मैं और मेरी मम्मी दो ही जन थे मेरे परिवार में
झोपड़ी थी मेरे पास दो चारपाई की आकार में ,
छवाया था हम दोनों ने उसे मजूरी धतूरी करके
काटे थे कई दिन रात अपने सपने अधूरी करके ,
फिर भी खुश थे हम दोनों अपने अपने भाग पर
गुजर बसर हो रहा था हमारा रोटी और साग पर ,
पर हमारी ये तुच्छ खुशियां किसी से न देखी गई
किसी ने किसी के कान फुके फिर रोटियां सेकी गई ,
सूरज ढलने का समय था हवाएँ सन सन चल रहीं थी
खेत से लौट रहे थे कि देखा मेरी झोपड़ी जल रही थी ,
ये नजारा देखकर मेरी बूढ़ी माँ तो अचेत हो गयी
दीवारें ही बची बाकी सब कुछ मुठ्ठी की रेत हो गयी ,
' To be continue '
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