उसने कहा था
"तुम्हारा मन जैसे फुदकती गौरैया"
मन उड़ गया दूसरे देस
मुंडेर पर अब कौवा दिखता
मन के लौटने की सूचना है
या दूर देस की गौरैया का श्राद्ध-
"सुनो डॉ साहिबा.."
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"कविता अनुशीर्षक में पढ़े.."-
बुढ़ापे मे थी जब जरूरत
एक कौर किसी ने निवाला तक न डाला
मरते ही पहले श्राद्ध पर पुत्रों ने
स्वर्ग तक अन्न- जल का प्रबंध कर डाला-
सुना हैं श्राद्ध का माह चल रहा है ....
गम भी पिंडदान करने की रिवायत है क्या??-
जब दर्द दिलो-दिमाग पर हावी हो आँखों से बह कर उन्हें खुश्क कर जाता है, तब हर शाम नदी के किसी छिपे हुए कच्चे घाट पर पानी में पैर डुबाये एक अजीब लड़का एक अजीब लड़की की यादों का श्राद्ध मनाता है।
वो अजीब लड़का वैरागी हो जाता है।-
नित जल का तर्पण करते हो
पर क्या दिल से कभी याद किया..
जो श्राद्ध में श्रद्धा नहीं तो
जो किया सब बेबुनियाद किया।।-
जीते जी कोई
सुध न लीनी
बोल न बोले,
बात न किनी
बाद मृत्यु के
शोक कर रहे
पितृ मुक्ति का
मना रहे हैं श्राद्ध
हलवा, पूरी,
नुक्ती, चीनी
और मिठाई
पंडित दीनी
स्वर्ग सिधारे
पूर्वज जीमें
पकवानों का स्वाद,
कहे संदीप
सुनो भई साधो
कितना भी अब
भोग लगा दो
मिटे न मन अवसाद...
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प्रवाहित
कर आई बिटिया
उन तपती
अस्थियों को
जो प्रतिक्षित थी
अंतिम श्वास तक
पुत्र आगमन को......
अवसाद की गठरी,
अपमान के आंसू
सभी बहा दिए
जो जन्म से संचित थे
पितृधन से,
तर्पण कर दिया
मोक्ष हेतु..!-
परंपराओं में भी दोहरी मानसिकता
आस्तिक नहीं अपनाया नास्तिकता
पुरुषों के लिए श्राद्ध तर्पण पिंडदान
स्त्रियों का किया, यहाँ घोर अपमान
पुत्र भूला, सभ्यता-संस्कृति-संस्कार
पुत्रियों ने निभाई सांस्कृतिक परंपरा-