उस धरा से इस धरा तक मेरा आना
और इस धरा उस धरा तक तेरा जाना
ये बीच का सफ़र जितना लम्हा तेरे साथ जिया
उन लम्हों के लिए कोई विशेष दिवस तो नहीं
हर दिन ही विशेष है
पर मातृदिवस एक ऐसा दिन है मां
जिस दिन तुम अहसास करा जाती हो
मेरी बदनसीबी , और वो सब पिछले जन्मों के पाप
जिसने मेरे सिर से ममता का आंचल छिन लिया
तुम्हारी कमी एक ऐसी कमी है जिसका श्राप
कभी किसी दुश्मन को भी न मिले
तुम हर वक्त मेरी यादों में हो
मेरे हर लम्हे में हो
तुम्हारे लिए कोई विशेष दिन नहीं मां
हर दिन ही विशेष है
काश इतनी सी प्रार्थना मेरी कुबूल हो जाए
ये सांसे मेरी बस रुक जाए
तुम्हारे पास आके , तुम्हारे आंचल में छिप के
एक सुकून सी नींद ले कही सकू
मां , मै इस धरा से उस धरा तक
तुमसे सबसे ज्यादा प्यार करती हूं-
पिता के प्रेम से पति के प्रेम को और पति के प्रेम से पुत्र प्रेम को जीवन भर प्रेम से वंचित महिलाएं अंततः मृत्यु की लालसा में विलीन हो जाती है
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हर वो सपना
हर वो ख्वाहिश
हर वो ज़िद्द
हर वो जुनून
जिसे पाने के लिए
मै बस चलती जा रही
चलती जा रही ....-
ठोकर लगने पर एक बार फ़िर भी संभल जाएंगे
धोखा दिया जो ख़ुद को गर फ़िर किधर जाएंगे-
बना लो अभिप्रेरणा अपने स्वपन को
हर उस निराशा के बादल हटाने के लिए
भर लो अदम्य साहस भुजाओं मे
हर उस विप्पति के मुकाबले के लिए
बाधाएँ तो कल भी थी और कल भी होंगी
उनका काम हैं तुम्हें विचलित करके जाना
एवरेस्ट की ऊँचाई सी दूर पड़ी है मंजिल
जिसे तुम्हें स्वयं ही होगा पाना
करो साहस, कर लो संकल्प मन मे
अब नही रुकोगे तुम इस प्रगति पथ मे
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करी हो विंतिया तोहसे
सुनअ हे भोला त्रिपुरारी
शंभु नाथ हें महादेवा
हे जगत के कल्याणी
करीला तू सब पर
कृपा हो बाबा
सुन हो अब त विनती हमारी
बहुत असफलता झेल रहली
हयी हम किस्मत के मारी
कहेला सब तोहके भोले बाबा
सब के तू ह दुखहरण हारी
हमरो विनती सुन ला ना हो बाबा
आस हयी अब बस तोहरे दुआरि
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वो चंद सी दिवारी
और व्याकुल से नैन
मानो कुछ ढूँढ़ रहे हो
शायद अपना पहला प्यार
जैसे वो वही मिलेगा
एक बार फ़िर थामने को
अपने हाथों मे मेरा हाथ
अपनी ज़िंदगी का आधा भाग
वो मेरा पहला प्यार
मेरे इनकार को
अपने इंतजार का वास्ता दे
वो करा लेगा इकरार
अपनी मोहब्बत का
वो मेरा पहला प्यार
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वो बात कुछ और थी
जब बेबाक हुआ करते थे बोल मेरे
आज तो आलम कुछ ऐसा हैं
एक कंधा भी चाहिए
तो पहले मरना पड़ेगा-
रंगों से सजाना था
हर कोना महकाना था
जीवन को जहाँ अपने
चंदन सा चमकाना था
पर फेर मति की मारी मैं
कुछ जलन की पीड़ा से
कुछ मोह के बंधन से
कलंकित कर के पापों से
आज हाथों का ये रंग
देखोे कैसे चमक रहा
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शहर की रोशनी मे छिपा
एक ऐसा अंधेरा
जिस से लड़ते लड़ते
हर रात यू बीत जाती है
मानो कल सुबह होगी
एक नई उम्मीदों की
और इसी तरह
रोशनी के साथ हर शाम
एक और उम्मीद का
वास्ता देकर ले आता है अंधेरा
उसी अंधेरे को दूर करने
हर रात संघर्ष करती है ये राते
मानो कभी तो सुबह होगी-