भले डांट घर में तू बीबी की खाना, भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलाना
भले जा के जंगल में धूनी रमाना, मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही ज़िन्दगी उनको देती है बेटे
खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं
सिपाही दरोगा चरण चूमतें है
लगाते-बुझाते सिखाते मिलेंगे
हथेली पे सरसों उगाते मिलेंगे
कचहरी तो बेवा का तन देखती है
कहाँ से खुलेगा बटन देखती है
(पूरी रचना अनुशीर्षक में)-
सबूत हजार थे तुझे मुजरिम करार करने के
पर ये दिल तो तेरा वफादार वकील निकला-
भले डांट घर में तू बीबी की खाना,
भले जैसे -तैसे गिरस्ती चलाना
भले जा के जंगल में धूनी रमाना,
मगर मेरे बेटे कचहरी न जाना
कचहरी ही गुंडों की खेती है बेटे
यही ज़िन्दगी उनको देती है बेटे
खुले आम कातिल यहाँ घूमते हैं
सिपाही दरोगा चरण चूमतें है-
अब तक के जीवन में पहली बार देख रहा हूँ 😎
👇
पुलिस सुरक्षा माँग रही है .....!
और वकील न्याय माँग रहे हैं.....! 😊😂😊-
माहौल कुछ ऐसा हर किसी पर सवार है हिंसा
सब को चाहिए सुरक्षा ,एक दूसरे पर करे हिंसा
मानवता भूल मानव मानव पे करे हिंसा
एक दूसरे की लड़ाई में तीसरे पे करे हिंसा
कैसे चले देश जहां नहीं कोई मेल
पुलिस वकील की लड़ाई में, जनता रही झेल
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देखता हूँ जब मैं अखबार इंडिया का
समझ आता है ये बाज़ार मीडिया का
कोई सुशान्त का वकील बना बैठा है
कोई बन बैठा है वफ़ादार रिया का-
हम वकील होते तब कुछ बात बनती..
मोहब्बत कितनी हैं उनसे,
ना ही सबुत दे पाये और ना ही कोई गवाह ला पाये...
इसलिये हमारी मोहब्बत सच्ची होते हुये
भी मुक्कमल ना हो पाये ....-
या रब्बा मुझे बचाये रखना इन तीन बलाओं से
डॉक्टरों से, वकीलों से और हसीनाओं की अदाओं से-
शायर और वकील,
ऐसे दर्ज़ी ठहरे ।
अल्फ़ाज़ों की कैंची से,
ख़ामोशी का धागा काट दें ।।
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