होगी लड़को को इश्क़ में तुमसे बटन खुलवाने की
मेरी चाहते है तुमसे अपने कमीज़ में बटन लगवाने की..!
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ये डर है , ये बड़ा खौफ है
लड़कियों की जिंदगी यहां सुरक्षित नहीं है ।
सच कहा आपने
हमारें लड़को को संस्कार की बहुत जरूरत है ।
इस देश में
कुछ दरिंदों को जिंदा जलाने की जरूरत है ।-
वो लड़कपन के दिन सुहाने थे
संग चलते फसाने ही फासाने थे
लड़कों के झुंड देख आहें भरते थे
इश्क के किस्से आम होते थे
दिल से शुरू दिल पर खत्म होते थे ।।
बेवजह ही खिलखिलाने लगते थे
नजरे बचा ओट में मिलने आते थे
आँखों में सपनो की महक थी
मस्त परिदै सी उड़ने की चाह थी
दिल से शुरू दिल पर खत्म होते थे ।।
कुछ इठलाते, बेपरवाह वो जमाने थे
हाथों में ले हाथ नजरों से छिपते थे
बिंदास बीतते वो जमाने थे
दिल से शुरू दिल पर खत्म होते थे
वो लड़कपन के दिन सुहाने थे ।।-
ईश्वर को आज मैंने लाख-लाख धन्यवाद किया है,
क्यूँकि जब से आया है सच तुम्हारा मेरे सामने मैंने खुद को भाग्यशाली समझकर;
पिछले कुछ दिनों में तुमको लगभग पूरी तरह से भुला दिया है,
खुश हूँ ये सोचकर कि गलत इंसान से बच गई बस इसी सोच से खुद को बहला लिया है,
मगर सच तो ये है कि आज मैं तमाम गुजरी हुई उम्र से बेहद दुखी हूँ कि इस संसार में तुम्हारे जैसे ही करोड़ो लड़कों ने मोहब्बत को बदनामी का दाग दिया है।-
प्रेम में पड़ा लड़का हिरण के नौनिहाल की तरह होता है।जो ऐहसासों के कुलांचे मारता,दिन भर इसी उधेड़बुन में रहता है कि कब लड़की के "भाव" के "अभाव" का "स्वभाव" बहिर्मुखी होगा।पर वो इस पागलपन में भूल जाता है कि उसे उम्र के व्यय के साथ लड़के से मर्द भी बनना है और अपने सुकुमार शरीर के सर पे उगे सींगों का भी ख्याल रखना है।ये सींग शायद जिम्मेवारी की है या मर्द होने की अतिरंजना।प्यार के बीज को पेड़ बनने के लिए सिर्फ मिट्टी नहीं पानी,हवा और पोषण भी चाहिए।फिर एक के सिर ही क्यूँ मढ़ दी जाती है सारी यातनायें।वक्त के साथ लड़की "सुरक्षा" की "असुरक्षा" में अपने हाथों में साँस लेती उँगलियों को क्यूँ छोड़ देती हैं ? मजबूरी महज दूरी के लिए ही होती हैं क्या?इतिहास में भी यातनायें सिर्फ लड़कों के हिस्से आई?ये आग दोनों तरफ बराबर क्यूँ नहीं जलती।कभी-कभी सोचता हूँ दोनों बराबर की बराबरी कब लेंगी?अधिकार के साथ कर्त्तव्य में भी...
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लडकियों के मुंह पर दुपट्टा और
लड़को के मुंह पर गमछा बाँध के
घूमने वाले दिन आ गए हैं😁😀-
जज़्बातों से खेल लिया,
हालातों से खेल लिया,
तूने चंद खुशी की खातिर,
अपनी प्यारी मुलाकातों से खेल लिया।
समझी थी मैं तुझे एक बेहतरीन दोस्त अपना,
पर तेरी हवस ने दोस्ती भूल, इज़्ज़त से ही खेल लिया।
मैने तो सब कहा तुझसे अपने दिल की हमेशा,
पर तू कुछ अलग ही समझ,मेरे खयालातों से खेल गया।
(ये एक लड़की की तरफ से उन लड़को के लिए
जो उन्हें हवस की शांति के लिए दोस्त बनाते हैं।)
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यूँ तो दिल में समुन्दर भरा है इनके....
लेकिन आँखों में कभी नमी नहीं होती....
और जितना सोचते हैं हम...
लड़को की ज़िन्दगी इतनी आसान भी नहीं होती...
घर में बड़े हैं या छोटे कंधे ज़िम्मेदारियों से भरे रहते हैं
अपने ही परिवार के खातिर ये अपनों से ही दूर रहते हैं,
घर वाले परेशान न हों घर पे इसलिए फ़ोन पे हर बार ठीक हूँ ही कहते हैं...
लड़की की विदाई में तो ज़माना रोता है...
लड़की की विदाई में तो ज़माना रोता है...
और इनके घर छोड़ जाने की चर्चा कुछ खास नहीं होती.......
और जितना सोचते हैं हम...
लड़को की ज़िन्दगी इतनी आसान भी नहीं होती..
माँ के लाडले बेटे हैं बेशक..
मगर अपनी पहचान अलग बनानी पड़ती है...
एक नौकरी की खातिर सैकड़ों ठोकरे खानी पड़ती हैं..
कभी हर बात में ढेरो नखरे होते थे जिनके....
बाहर रह कर सारी फ़रमाहिसें भुलानी पड़ती हैं...
कुछ लड़कों को जरूरतें जगाए रखती हैं,
कुछ को जिम्मेदारियां सोने नहीं देती...
और जितना सोचते है हम...
लड़को की ज़िन्दगी इतनी आसान भी नहीं होती....!-
"रिश्ते संजोने की हमें बचपन से आदत है
उन लड़कों में नहीं थे हम जो खिलौने तोड़ देते हैं..!"-